________________ (51) कामदेव काल के समान महाबली है, इस का पराक्रम अकथनीय है, इसने सारे चराचर जगत् को वश में कर रखा है, यह तीनों लोकों को पीड़ा देता है और लाख जतन करने से भी नष्ट नहीं होता, बिरले ही इस के फंदे से छूटते है / कामातुर पुरुष दश वेगोंसे ग्रस्त होता है.-१ चिन्ता कि स्त्री का संसर्ग कैसे हो 2 उस के देखने की इच्छा 3 आह भरता है और कहता है कि देखना नहीं हुआ 4 ज्वर हो जाता है 5 शरीर जलने लगता है 6 भोजन भी अच्छा नहीं लगता 7 मूच्छित वा बेहोश हो जाता है 8 उन्मत्त वा पागल बनकर बकने लगता है 9 यह सन्देह हो जाता है कि अब जीना दुर्लभ है अर्थात् जान के लाले पड़ जाते है 10 अन्तमें मृत्यु हो जाती है / इन वेगों से व्याकुल प्राणी वस्तुओं के ठीक 2 स्वरूप को नहीं देख सक्ता / कामान्ध जीव को जब लोक व्यवहार का ही ज्ञान नहीं रहा तब उसे परमार्थ का ज्ञान कहा हो सक्ता है / कामज्वर के प्रकोप के तीव्र, मध्यम और मन्द होने से ये दश वेग तीव्र, मध्यम और मन्द भी होते हैं। __ यह काम बड़े अभिमानियों का मानभा कर देता है, बुद्धिमानों का ज्ञान और शील क्षणभर में दूर कर देता है यहा तक कि उन को किसी नीच स्त्री के वश में होकर सब प्रकार के नाच नाचने पड़ते हैं / काम की पीड़ा के आगे चारित्र बिगड़ जाता है, पढ़ना पढ़ाना सच बोलना धीरज रखना सब कुछ भूल जाता है। काम का कांटा लगने वा चुभने से प्राणी की नींद, चलना फिरना, मिलना, जुलना, भोजनादिक सब भाग जाते हैं। काम के