________________ (50) वह ब्रह्मचर्य महावत है / धीर और सज्जन ही इस व्रत का पालन कर सक्ते है। महिमा-ब्रह्मचर्य तीनों लोक में प्रशंसनीय है और ब्रह्मचारी पुरुष पूज्यों का भी पूजनीय है / ब्रह्मचर्य चारित्र का एकमात्र जीवन है और इस के विना इतर सारे गुण क्लेशदायक हैं। शीलहीन और इन्द्रियाधीन पुरुष ऐसे कठिन व्रत को कदापि अवलम्बन नहीं कर सक्ते / __ महाव्रतधारी ब्रह्मचारी को चाहिये कि निम्नलिखित दस प्रकार के मैथुनों को सर्वथा त्याग दे 1. शरीर का बनाव ठनाव करना 2. पुष्टिकारक रस का सेवन करना 3. राग बाजे का सुनना और नाच का देखना 4. स्त्री से मिलाप करना 5. स्त्री विषयक विचार करना 6. स्त्री के अंग देखना 7. उस देखने को हृदयाकित करना 8. पहले किए हुए सम्भोग का याद करना 9. आगे भोगने की चिन्ता करनी 10 वीर्य का पतित होना / मैथुनरूपी वृक्ष का फल देखने में सुन्दर और खाने में खादु है, परन्तु खाए पीछे उस का परिणाम विषके समान है और खानेवाले का नाश कर देता है। कामरूपी अमि बड़ी तीव्र है, पहले इस की ज्वाला प्राणियों के हृदय में उठती है फिर धीरे 2 बढ़ती जाती है और अन्त में जेठ के सूरज की नाई प्रकाशमान होकर सारी देह को जलाकर भल कर देती है / परम योगी इस लोक को कामान्ध देखकर भात्मध्यान में ही मम होते हैं और ज्ञानरूपी अमिसे सारे कर्मों का नाश कर देते हैं।