________________ (49) 2. चौरार्थादान चोरी का धन वस्त्रादिक लेना 3. विलोप, चुंगी आदिक न देना अर्थात् जिस वस्तु पर राजा ने कर लगा रखा है उस को छुपाकर बिना कर दिए घर ले आना और इस प्रकार राजकीय आज्ञा का उल्लंघन करना 4. अधिक मूल्यवाली वस्तु में हीनमूल्यवाली वस्तु मिलाकर बेचना 1. तोल, मापके बाँट तराजू गज आदिक कमती बढ़ती रखना / किसी का धन हरना उसके प्राण हरने के समान है। चोरी करना निन्दनीय वस्तु है / चोरी करने से शीलभंग हो जाता है / चोर के हृदय में दया नहीं रहती और पराया धन हरण के लिए अनेक प्रकार के अनिष्ट करता है / चोर को सब अर्थात् उस के मित्र और कुन्वेवाले भी त्याग देते है और उस का चित्त सदा भयभीत रहता है कि कहीं मै पकड़ा मारा या पीटा न जाऊं। चोर के ससर्ग से अच्छे पुरुषों को भी हानि पहुंचती है। चोर को इस लोक और पर लोकमें भी महा दुःख सहने पड़ते है / इस लिए हे मनुष्य ! तू दूसरे के किसी स्थान में रखे हुए या गिरे हुए तथा नष्ट हुए धन को मन वचन काय से ग्रहण करना छोड़ दे। चोरी करना वा चोर के पास बैठना भी सर्वथा निषिद्ध है और चोरी मानो एक प्रकार की अमि है जो धर्मरूपी वृक्ष को जलाकर नष्ट कर देती है। ब्रह्मचर्य महाव्रत लक्षण-जिस व्रत को धारण कर के योगी और मुनिजन परब्रह्म परमात्मा को जानते और अनुभव करते हैं आ. श.४