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________________ खामी श्रीवीतरागदेव प्रधान है, ऐसे ही शील व्रत और तपोंमें अहिंसा प्रधान है। अब सत्यमहाव्रत का वर्णन किया जाता है / मनुष्य अपने मुख वा जिह्वा से अनेक प्रकार के मिथ्यादि वचन बोल सक्ता है, परन्तु उत्तम पुरुष और मुनि सत्य वा सच ही बोलते है। असत्य बोलने वा मिथ्याभाषण से अहिंसावत खडित हो जाता है / असत्य बोलनेसे चुप रहना उत्तम है वा स्पष्टरीति से यह कहना मला है कि यद्यपि मै जानता हू पर मै नही बताऊंगा क्योकि इस बातके बताने में दूसरे की हानि होती है / अर्थात् प्रत्येक को चाहिये कि प्राण भी चले जाँय पर सच बोलने से न डरे / देखो स्वार्थी पुरुषो ने अपनी ओर से असत्य शास्त्र रचकर भोले भाले लोगों को कुमार्ग पर चलाया है, इस से वे आप और अन्य जन भी पाप के भागी बनकर नरक मे जॉयगे। __ मर्मच्छेदी और निर्दयरूपी वचन से करुणामय और मृदु वचन अच्छा है / जो वचन धर्म क्रिया और सिद्धान्त के विरुद्ध हो विद्वानो को विना पूछे ही उनका खण्डन अवश्य करना चाहिये और सत्य धर्मका समर्थन होना चाहिये। ___ सत्यमे क्रोध, लोभ, भय, हसी ठढे का त्याग चाहिये, शास्त्रानुसार बाते करनी चाहिये और व्यर्थ बातों में समय नही खोना चाहिये। मिथ्याभाषण के पांच अतीचार है। 1 परिवाद-अर्थात् शास्त्रविरुद्ध उपदेश करना। 2 रहो
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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