________________ (54) पहले अहिंसा महाव्रत का वर्णन करते हैं,-अहिंसा मुख्य गुण है और शेष चार गुण इसी पर आश्रित हैं। सब प्रकार की हिंसा का मन वचन और काय से त्याग हो इसे आद्य महाव्रत कहते है / अर्थात् न तो हिंसा आप करे न किसी से कराए और न किसी को हिंसा करनेकी अनुमति वा सम्मति दे / क्रोध, मान, माया, लोभके वश मे आकर और इन चारो कषायों की न्यूनाधिकता के आधीन होकर भी हिंसा कभी न करे वरच प्रमाद रहित होकर सम्पूर्ण जीवों को बन्धु की दृष्टि से देखे और मित्रभाव रखकर सब की रक्षा करे / मैत्री, प्रमोद. करुणा और उपेक्षा इन चार गुणों को हमे अपने जीवन मे ग्रहण करना चाहिये।१ मैत्री, हमे सदा वह रीति सोचते ‘रहना चाहिये जिससे हम सारे प्राणियों का भला कर सके। प्रेम वा सार्वत्रिक भलाई का भाव रखने से हमारे ही मन शुद्ध और उच्च नही होंगे वरच इतर प्राणियो मे भी वैसे ही प्रेम के भाव उत्पन्न होंगे / 2 प्रमोद, अर्थात् जब कभी हम प्राणीमात्र की उन्नति की वार्ता सुने तो हमारे भीतर हार्दिक और सच्ची प्रसन्नता होनी चाहिये / 3 करुणा, सब भूतों पर दया और अनुकम्पा रग्वना और उनके दुःखों को दूर करना। 4 उपेक्षा, दूसरोंके अपराधो कों क्षमा करना / इसे एक सस्कृत श्लोक में इस प्रकार वर्णन किया है। सत्त्वेषु मैत्री गुणिषु प्रमोदं, क्लिष्टेषु जीवेषु कृपापरत्वम् /