________________ (44) मानो एक दीपक है, और विषयरूपी मछलियों को पकड़ने के लिए एक जाल है। ___ यह संसार एक प्रकार का वन है, इस वन में पापरूपी सर्प के विष में सारे प्राणी निमग्न है, क्रोधलोभादिक ऊंचे 2 पर्वत है और दुर्गतिरूपी नदियां सारे वन में फैली हुई है, जब तक इस संसाररूपी बन में ज्ञानरूपी सूर्य का उदय न होगा, तब तक अज्ञानरूपी मोहादिक दुःखदायी अन्धकार का नाश नही होगा अर्थात् ज्ञानरूप सूर्य के प्रकाश होने से किसी प्रकार का दुःख वा भय नहीं रहता। सम्यक्चारित्र। लक्षण-जो विशुद्धता वा शुद्धि का सब से ऊचा स्थान है, ' जिस को योगीश्वर और मुनिजन अपने जीवनमें वर्तते है, और जिस के अनुसार चलने से मनुष्य सकल पकार के पापों से छूट जाता है उसे सम्यक चारित्र कहते है। . प्रकार-चारित्रको एक वृक्ष मानकर उसके 13 प्रकार लिखे है,-पाच महाव्रत उस वृक्षके मूल वा जड़ है, पाच समिति उसके प्रकार वा फैली हुई शाखाएं है, और वह चारित्ररूपी वृक्ष तीन . गुप्तिरूपी फलों से नम्रीभूत है / अब इनका वर्णन करते है / ___ पञ्चमहाव्रत ये हैं,-१ अहिंसा 2 सत्य 3 अस्तेय या अचौर्य 4 ब्रह्मचर्य 5 अपरिग्रह / अर्थात् हिंसा मिथ्याभाषण वा अनृत, चोरी, मैथुन और परिग्रह इन पांच प्रकारके पापों में त्यागभाव होना ही व्रत है।