________________ (40) ( विशुद्ध भाव ) का जीवन स्वरूप है अर्थात् सम्यक्स्व के बिना यम और प्रशम निर्जीव के तुल्य है, इसी से शमदमबोधव्रततपादि फलीभूत हैं / सम्यक्त्व के बिना ज्ञान मिथ्याज्ञान और चारित्र मिथ्याचारित्र है / जिसको विशुद्ध और निर्मल सम्यक्त्व है वही पुण्यात्मा वा महाभाग्य है क्योंकि मोक्षमार्ग के प्रकरण में सम्यक्त्व ही मोक्ष का मुख्य अग कहा गया है। सम्यग्ज्ञान / जीवादि सात तत्त्वों को भले प्रकार यथार्थ रीति से जानने को सम्यग्ज्ञान कहते हैं अर्थात् वस्तु के स्वरूप को न्यूनता अधिकता विपरीतता और सन्देह रहित वा पूर्ण रीति से जैसा का तैसा जानना सम्यग् ज्ञान है। कर्मनिमित्त से ज्ञान के पांच मेद है 1 मतिज्ञान 2 श्रुतज्ञान 3 अवधिज्ञान 4 मन पर्ययज्ञान 5 केवलज्ञान 1 मतिज्ञान-ससार में जितनी वस्तु है उन का ज्ञान पांच इन्द्रियों अर्थात् चक्षु, श्रोत्र, नासिका, जिह्वा, देह और छटे मन के द्वारा होता है वा यह कहो कि किसी वस्तु के जानने के लिए यह आवश्यक है कि प्रत्येक वस्तु किसी न किसी इन्द्रिय के समीप हो और मन उस की ओर ध्यान दे। इस प्रकार जानने से जिस वस्तु की स्थिति सिद्ध और निश्चित हो जाए उसे अर्थ कहते है और जिस वस्तु के होने में संदेह रहे उसे व्यञ्जन कहते हैं यथा नासिका में किसी प्रकार की सुगन्धि आई और तत्कालही नष्ट होगई, श्रोत्र में