________________ मोक्षमार्ग है / दर्शन ज्ञान और चारित्र की शुद्धता प्राप्त किए बिना ध्यान करना निष्फल है क्योंकि ऐसे ध्यान से मोक्ष नहीं मिल सक्ती। सम्यग्दर्शन। जीवादि सात तत्त्वों में जिन का वर्णन पहले आचुका है, श्रद्धा करना सम्यग् दर्शन है / इसकी प्राप्ति के दो प्रकार है, निसर्गेण अर्थात् स्वभाव से वा अधिगमेन अर्थात् परोपदेश से। यह सम्यम् दर्शन भव्य जीवों ही को प्राप्त होता है अभव्य को नहीं / सम्यग् दर्शन को सम्यक्त भी कहते है। सम्यक्त्व तीन प्रकार का है / दर्शनमोहिनीय की तीन और चारित्रमोहिनीय की चार प्रकृतियों के उपशम वा दुर्बल होने से उपशमसम्यक्त्व, इन के क्षय वा सर्वथा दूर होनेसे क्षायिकसम्यक्स, और इन के कुछ क्षय तथा कुछ उपशम होने से क्षायोपशमिक सम्यक्त होता है / हमे सच्चे देव सच्चे शास्त्र और सच्चे गुरु में श्रद्धा रखनी चाहिये और मिथ्यात्व से बचना चाहिये। ___ अन्तमें सम्यग्दर्शन की महिमा वर्णन करते समय कहा है कि सम्यग्दर्शन अमृतरूप है इस को सदा पान करना चाहिये; सम्यगदर्शन पूर्ण और अनुपम सुख की खानि है, सब प्रकार के कल्याण इसी से प्राप्त होते है, यही इस भवरूपी सागर से पार होने की वृहत् नौका है इसी से पाप के बन्धन कटजाते है, यही सारे पवित्र तीर्थों में मुख्य तीर्थ है / यह सम्यक्त्व महारत्न है और मोक्ष पर्यन्त आत्मा का कल्याणदायक है, सम्यक् चारित्र और सम्यग्ज्ञान का उत्पन्न करनेवाला है, यम ( महाव्रतादि) और प्रशम