________________ (36) हुआ है / परम मोक्ष के ढूंढनेवालों के लिए सात तत्त्वों का सर्वथा जानना अवश्य है / ये सात तत्त्व (1) जीव, अर्थात् आत्मा (2) पुद्गल अर्थात् जड़ प्रकृति या देह (3) आस्रव, नए कों का आना (4) बन्ध कर्मों का जीव को बाँधना (5) सम्बर, नए कर्मों के आने को रोकना (6) निर्जरा, प्रत्येक कर्म का पृथक् 2 नाश करना और होना (7) मोक्ष, सकल कमों से सदा के लिए रहित होना और पारमार्थिक ( वास्तविक ) गुणों पर से आवरण का दूर होना और इस आवरण के दूर होजाने से उन गुणों का प्रगट होना / इन सातो को सात तत्त्व कहते है / इन में से जीव और अजीव का व्याख्यान हम पहले कर चुके है और आस्रव, सम्बर और निर्जरा का सक्षिप्त वर्णन 'शील और भावना' मे आचुका है, अब हम आगे जाकर बन्ध और मोक्ष का वर्णन करेगे,, अर्थात् कर्मों के द्वारा कर्म-बन्धन और मुक्ति की व्याख्या करेंगे। कर्मों का वर्णन करने से पहले हम इन सातो तत्त्वों को एक उदाहरण देकर स्पष्ट करते है, यदि आत्मा और पुद्गल के सम्बन्ध को एक तलाव मान लिया जाए और शुम अशुभ कर्मों का इसमें जल भरा हुआ समझा जाए और मन, वचन, काय नए कर्मरूपी जल आने के लिए इस तलाव की मोरिया मान ली जाए, तो नए कर्मरूपी जल आने को आस्रव कहते है और इस जल को आकर तलाव में एकत्रित होने का नाम बन्ध और मोरियों के मुँह बन्द करने और इस प्रकार नए जल के आने को रोकने का नाम सम्बर और धीरे 2 जल के प्रत्येक भाग