________________ वादरसूक्ष्म,-जैसे, छाया, चान्दनी आदि / सूक्ष्मवादर,-जैसे गन्ध, वायु आदि / सूक्ष्म, जिनको इन्द्रियों से ग्रहण न कर सकें, जैसे कर्म वर्गणादिक / सूक्ष्मसूक्ष्म,-कर्मवर्गणा से छोटे, परमाणुओं के बने हुए स्कन्ध / यह भी याद रक्खो कि इन चेतन अचेतन पदार्थों में तीन गुण है / जिनका वर्णन ' शील और भावना ' में आचुका है / इन तीन गुणों या तीन मूल शक्तियों का नाम जिनमत में " उत्पाद व्यय ध्रौव्यत्व " है / शेष तत्वों का वर्णन / इस ससार में कर्म सहित जीव और पुद्गल अर्थात् आत्मा और शरीर का सम्बन्ध परम्परा से चला आया है और इसी सम्बन्ध ने जीव के वास्तविक गुणों सर्वज्ञता, सर्वदर्शिता, सर्वशक्तिमत्ता और सच्चिदानन्दरूप को छुपा रक्खा है / जैसे कीचड़ में पड़ा हुआ और मिट्टी में मिला हुआ रत्न नही चमकता, इसी प्रकार पुद्गल से मिला हुआ जीव अपने वास्तविक गुणो को प्रगट नहीं कर सक्ता / इस संसार मे जीव को जो दु.ख और सुख या हर्ष और शोक होता है इसी सम्बन्ध के कारण है / जब तक जीव को मोक्ष नही प्राप्त होती, तब तक यह सम्बन्ध बना रहता है और इसी लिए यह जीव नाना प्रकार के घोर कष्ट और महा दुःखों में फंसा रहता है और आवागमन की शृङ्खला में जकड़ा