________________ (30) दर्शिताके कारण संसारके परमाणु तकके वृत्तान्तको जानता और देखता है और इसी अर्थमें उसको सार्व या सर्वव्यापक कहा है / सार्वसे यह भी जानना चाहिये कि आत्मा सबके हितके लिए समस्त पदार्थों में व्याप्त है अर्थात् अनेक जीव जो इस संसार में है यद्यपि कर्मबन्धन के कारण इस समय परमात्मा नहीं है परन्तु एक समय ऐसा आसकता है कि, वे कर्मरहित होकर परमात्मा वा परमात्माके सदृश होजाएंगे। यह आत्मा अनन्त वीर्यवान् है, सकल वस्तुओंको प्रकाशित करता है, और ध्यान शक्तिके प्रभावसे तीनों लोकोको भी चलायमान कर सकता है / इस आत्माकी शक्ति योगियोंके भी अगो चर है / क्योंकि विशुद्ध ध्यानके बलसे जिम समय यह आत्मा कर्मरूपी बन्धनोंको भस्म कर देता है, उस समय इस आत्मा में अनन्त पदार्थों के देखने तथा जाननेकी शक्ति प्रगट हो जाती है, और फिर यह आत्मा ही स्वयं साक्षात् परमात्मा बन जाता है। "ज्ञानामिः सर्वकर्माणि भमसात् कुरुते तथा" (गीता) गीताके निम्नलिखित श्लोकोंसे भी आत्माकी शक्ति और कर्मानुसार फल भोगनेका ज्ञान होता है नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः / न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः // अर्थ-इस देही या आत्माको खड्ग आदिक शस्त्र नहीं काटते, आग नहीं जलाती; जल नहीं भिगोता और वायु नहीं सुखाता।