________________ (28) और माध्यस्थ्य वा उदासीनता (बुरे मनुष्यों और दुर्जनोंसे कुछ सम्बन्ध न रखना ) ये भावनाएं सदा वास करती है और इस कारण किसी प्रकार के कामादि विकार भाव नही उपजते, जिनके तीव्र तपके आगे कामदेव जल कर भस्म हो जाता है और जो केवलज्ञानरूप और पूर्ण आनन्दमय है। ऐसे मुनियों के महातम ( माहात्म्य ) की व्याख्या नही हो सकती / ये सम्पूर्ण विद्याओमें विशारद है / इनका चित्त निर्मल और दयामय है / ये सुमेरु की नाई अचल होकर अपने नियमो पर दृढ है / चन्द्रमा के समान आल्हादक और सुखदायक है और पवन के सदृश निर्लेप है / लोगोंको हितोपदेश देकर सत्य मार्ग पर लाते है / ऐसे परम उदारचित्त और पवित्र आचरणवाले मुनिवर ही ध्यान के पात्र है। ध्यान की सिद्धिके लिये ऊपर लिखे हुए भुनियोंकी सेवा करनी योग्य है। हे आत्मन् / यदि तू मोक्षकी इच्छा रखता है, तो ससारके विषयोंको छोड़ दे और वनके किसी एकान्त स्थानमें जाकर ध्यान में मम हो जा। हे सुबुद्धि ! यह आयुः समुद्र की लहरों की नाई चंचल है, जवानी की शोभा भी थोड़े ही दिनो में जाती रहेगी, धन भी संकल्पके समान चिरकालतक नही रहेगा, भोगविलास बिजली के सदृश झट नष्ट हो जानेवाले है, प्यारी स्त्रियों के गलेसे आलिङ्गन भी चिरस्थायी नही है / इस कारण इस भवरूपी भयानक सागरसे पार होने के लिए अपने चित्तको इन्द्रियों के विषय