________________ (27) खरूप ही मालूम नहीं, तो उनको ध्यानकी सिद्धि कैसे हो सकती है? फिर यह भी जानना चाहिये कि जिन्होंने गृहस्थ आश्रमको त्याग दिया और तत्त्वोंका ठीक 2 स्वरूप भी समझ लिया परन्तु सत्यशास्त्रोक्त मुनिधर्मके विरुद्ध आचरण करते रहे-अर्थात् मुनिका वेष धरकर अनेक प्रकारसे लोगोको ठगते और धोका देते रहे उनको खममें भी ध्यान की सिद्धि नही हो सकती है। ऐसे पुरुष परिश्रमसे बचने, मजे उडाने, तर माल खाने, विषय भोगने, ठग्गीका जाल फैलाने और अनेक प्रकारके कुकर्म करनेके लिए मुनि होते है / ये लोग तो गृहस्थोसे भी बुरे है ? ध्याता योगीश्वरों की प्रशंसा। वे संयम धारण करनेवाले मुनि धन्य है जो वस्तुका यथार्थ खरूप जानते है, मोक्षकी आकाक्षा रखते है और ससार के क्षणभंगुर सुखोंको नही चाहते है / अनेक योगीश्वर ऐसे हो गए है और कदाचित् आजकल भी ढूढनेसे मिल सकते है जो ससारसे विरक्त है, जिनके भाव शुद्ध है और जिनकी चेष्टाएं पवित्र है / ध्यानस्थ मुनि वे ही है जिन्हों ने एक वार मुनिपन को अंगीकार करके प्राणोंके नाश होनेपर भी संयमकी धुरीको नही छोड़ा, जिन्होंने सकल परीषहोंको जीत लिया और क्रोध लोभ मोह अहकार को वशमें कर लिया, जिनके मनमें भैत्री ( अपने बराबर बालोंके साथ मित्रता ) कारुण्य वा करुणा ( अपने से छोटों पर दया) प्रमोद वा मुदता ( अपनेसे बड़ों को देखकर प्रसन्न होना)