________________
तातें मरण भये प्रिय जनके, सुखकर पुण्यविदारी। सदा घोर दुखदाइ शोकको, कौन करै मतिधारी १॥२२॥ स्वजन मरेपर जगमें मानव,गण जो अति बिललाचैं। जन्मत मोद करें तिहिं गणधर, बातुलता बतलाबैं॥ जातें जड़ता-दुश्चेष्टार्जित,- कर्मउदयवश जानो। जन्ममरणपरिपाटीमय यह, सब जग नित्य बखानो ॥२३॥ बड़ी भ्रांति यह जग जीवनकी, अथवा जड़ता माने । बहुदुखजालजटिल जगमें बसि, आपदि शोक जु ठानैं ।। भूत प्रेत चिंति फेरु अमंगल,-पूरण मरघट माहीं। करिकै घर, भयदाइ वस्तुसे, को शंकै मन माहीं ॥२४॥ गगनमाहिं ज्यौ चंद्र भ्रमै है, त्यो जग नित प्राणी ।
गति उदयास्त लहै वा त्यौं ही, हानी रद्धि बखानी॥ रिणो देशास्तटिन्या जनै , सा वेला तु मृतेर्ने पक्षमचलनस्तोकापि देवैरपि। तत्कस्मिन्नपि सस्थिते सुखकर श्रेयो विहाय ध्रुव, क सर्वत्र दुरन्त दुःखजनक शोक विदध्यात्सुधी ॥ २२॥ आक्रन्द कुरुते यदत्र जनता नष्टे निजे मानुषे, जाते यच्च मुद तदुन्नतधियो जल्पन्ति वातूलताम् । यजाड्यात्कृतदुष्टचेष्टितभवत्कर्मप्रबन्धोदयान्मृत्यूत्पत्तिपरपरामयमिद सर्व जगत्सर्वदा ॥ २३ ॥ गुर्वी भ्रान्तिरिय जडत्वमथवा लोकस्य यस्माद्वसन्, ससारे बहुदुःखजालजटिले शोकी भवत्यापदि । भूतप्रेतपिशाचफेरवचितापूर्णे श्मशाने गृह, कः कृत्वा भयदादमगलकृते भावाद्भवेच्छकितः ॥ २४ ॥ भ्रमति नभसि चन्द्रः ससृतौ शश्वदङ्गी,
१ पुण्य कर्म धर्म कर्मको छोडकर । २ पागलपन, उन्मत्तता। ३ अज्ञानभाव और खोटे आचरणोंके द्वारा बंधे हुए कर्मोके आधीन । ४ आपदा और दु खके समयमें-मुसीबतके वकमें। ५ चिता। ६ शगाल वा राक्षस। ७ उदय और अस्तगतिको प्राप्त होता है अर्थात् निकलता है और छिप जाता है। ८ घटना
बढना।