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अथवा राशीसे राशीको, गमन करै शेशि जैसे। तनु तज तनु धारै कैलुपित जिय, हर्ष शोक फिर कैसे ॥२५ बिजुरी सम क्षणभंगुर यह सब, सुतदारादिक जानो। नाश भये तिन खेद करै किम ? जो नर चतुर सयानो। उपजन विनशन थितिधारन यह, शीले सभी द्रव्योंका । अग्निशील जिम उष्णपनो है, नहिं यामै कहुँ धोका ॥२६॥ मृत्यु शोकसे इष्ट जननके, उपजै कर्म असाता । ताकी पुन बहु शाखा फैलैं, जीव माहि दुखदाता ॥ छोटासा वट-बीज खेतमें, बोया ज्यौ भवि प्राणी ! बहु विस्तार धरै त्यौ यह लखि, शोक तजो अघखानी॥२७ क्षण क्षणमें जो आयू छीजै, ताको यममुख जानो। तामें प्राप्त भये सब ही जन, मृतक शोक किम ठानो?॥ जो यमगोचर नाहिं जगतमें, हुआ न कबहूँ होई । वह ही शोभै मृतक शोक कर,नाहिं अन्य जन कोई ॥२८-२९ लभत उदयमस्त पूर्णता हीनता च । कलुपितहृदय सन् याति राशि च राशेस्तनुमिह तनुतस्तत्कोऽत्र मुत्कश्च शोक ॥ २५ ॥ तडिदिव चलमेतत्पुत्रदारादिसर्व, किमिति तदभिघाते खिद्यते बुद्धिमद्भि । स्थितिजननविनाश नोष्णतेवानलस्य, व्यभिचरति कदाचित् सर्वभावेषु नूनम् ॥ २६ ॥ प्रियजनमृतिशोक सेव्यमानेति मात्र, जनयति तदसात कर्म यच्चानतोऽपि। प्रसरति शतशाख देहिनि क्षेत्र उप्त, वट इव तनुबीज त्यज्यता सप्रयत्नात् ॥ २७॥ आयु. क्षति प्रतिक्षणमेतन्मुखमन्तकस्य तत्र गताः । सर्वे जनाः किमेक. शोचयत्यन्य मृत मूढः ॥ २८ ॥ यो नात्र गोचर मृत्योर्गतो
१ चद्रमा। २ मलिन हृदय हुआ। ३ उत्पाद व्यय ध्रौव्य । ४ स्वभाव । ५ वह कर्म जिसके उदयसे दुख होता है-दुःखकी सामग्री मिलती है।