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________________ (१८) रोगजनित वेदना फेतीक है रोग ही मेरा उपकार कर है रोग नहीं उपजता तो देहतँ मेरा स्नेह नहीं घटता अर समस्ततै टि परमात्माका शरण नहीं ग्रहण करता ताते इस अवसरमैं जो रोग है सोहू मेरा आराधनामरणमैं प्रेरणा करनेवाला मित्र है ऐसे विचारता ज्ञानी रोग आये क्लेश नहीं करै है मोहके नाश करनेका उत्सव ही मानै है ॥ १२ ॥ ज्ञानिनोऽमृतसंगाय मृत्युस्तापकरोऽपि सन् । आमकुम्भस्य लोकेऽस्मिन् भवेत्पाकविधिर्यथा १३ अर्थ, यद्यपि इस लोकमैं मृत्यु है सो जगतके। आतापका करनेवाला है तो हू सम्यग्ज्ञानीकै अमृतसंग जो निर्वाण ताके अर्थि है जैसे काचा घड़ाकू अग्निमैं पकावना है सो अमृतरूप जलके धारणके अर्थि है जो काचा घड़ा अग्निमैं नहीं पकै तो घड़ामैं जल धारण नहीं होय है । अग्निमैं एक वार पकि जाय तो बहुत काल जलका संसर्ग• प्राप्त होय तैसें मृत्युका अवसरमैं आताप समभावनिकरि एक वार सहि जाय तो निर्वाणका पात्र हो जाय । भावार्थ,-अज्ञानीकै मृत्युका नामतें भी परिणाममैं आताप उपजै है जो मैं अब चाल्या अब कैसे जीऊं कहा करूं कौन रक्षा करै ऐसे
SR No.010656
Book TitleAnitya Bhavna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherJain Granth Ratnakar Karyalay
Publication Year1914
Total Pages155
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Religion
File Size5 MB
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