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शरीरकी संगतिः वेदनाका जानना मेरे हू है अमितें झुपड़ी बलै है झूपड़ीके माहिं आकाश नहीं बलै है तैसैं अविनाशी अमूर्तिक चैतन्य धातुमय आत्मा ताका रोगरूप अग्निकरि नाश नहीं है अर अपना उपजाया कर्म आपकू भोगना ही पड़ेगा कायर होय भोगूंगा तो कर्म नहीं छाड़ेगा अर धैर्य धारणकरि भोगूंगा तो कर्म नहीं छाडैगा तातै दोऊ लोकका बिगाड़नेवाला कायरपनाकू धिक्कार होहू कर्मका नाश करनेवाला धैर्य ही धारण करना श्रेष्ठ है अर हे आत्मन् तुम रोग आए एते कायर होते हो सो विचार करो नरकनिमैं यो जीव कौन कौन त्रास भोगी असंख्यात बार अनंत वार मारे विदारे चीरे फाड़े गये हो इहां तो तुमारै कहा दुःख है अर तिर्यंच गतिके घोर दुःख भगवान ज्ञानी हू वचनद्वारकरि कहनेकुं समर्थ नहीं अर मैं तिथंच पर्यायमैं पूर्वै अनंतवार अग्निमैं बलि बलि मख्खा हूं अर अनंतबार जलमैं ड्रवि ड्रवि मस्या हूं अनंतबार विष भक्षण कर मस्खा हूं अनंतवार सिंह व्याघ्र सर्पादिकनिकरि बिदाया गया हूं शस्त्रनिकरि छेद्या गया हूं अनंतबार शीतवेदनाकरि मस्सा हूं अनंतवार उष्णवेदनाकरि मस्या हूं अनंत बार क्षुधाकी वेदनाकरि मस्या हूं अनंतबार तृषाकी वेदनाकरि मख्खा हूं अब यह