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प्राकृतव्याकरणम् [मू. ८-४-३५६ अम्हे थोवा रिउ वहुअ कायर एम्व भणन्ति । मुद्धि निहालहि गयण-यल कइ जण जोण्ह करन्ति ॥ । अम्वणु लाइवि जे गया पहिअ पराया केवि। .
अवस न अहिं सुहच्छिअहिं जिवँ अम्हई तिवँ तेवि ॥ अम्हे देक्खइ । अम्हई देक्खइ । वचनभेदो यथासंख्यनिवृत्त्यर्थः ॥३७६॥
टा--ङ्यमा मई ॥ ८।४।३७७॥
अपभ्रंशे अस्मदः टा डि अम् इत्येतैः सह मई इत्यादेशो भवति ॥ टा।
मई जाणिउं पिअ विरहिअहं कवि धर होइ विआलि ।
णवर मिअड्कुवि तिह तवइ जिह दिणयरु खय-गालि ।। ङिना। पई मइं बेहिं वि रण-गयहिं ॥ अमा। मई मेल्लन्तहो तुज्झु ॥३७७॥
अम्हेहिं भिसा ।। ८।१।३७८ ॥ ... .
अपभ्रंशे अस्मदो भिसा सह अम्हेहिं इत्यादेशो भवति ॥ तुम्हेहिं अम्हहिं जं किअउं ।। ३७८ ॥
महु मज्झु ङसि-उस्भ्याम् ॥ ८।४।३७९ ॥
अपभ्रंशे अस्मदो उसिना ङसा च सह प्रत्येकं महु मज्झु इत्यादेशौ भवतः ॥ महु होन्तउ गदो । मज्झु होन्तउ गदो ॥ ङसा ।
महु कन्तहो बे दोसडा हेल्लि म झङ्खहि आलु। ' देन्तहो हउँ पर उव्वरिअ जुज्झन्तहो करवालु ॥ जइ भग्गा पारकडा तो सहि मज्झु पिएण ।। अह भग्गा अम्हहं तणा तो तें मारिअडेण ॥ ३७९ ।। .. अम्हहं भ्यसाम्भ्याम् ॥ ८।४।३८० ॥ .
'अपभ्रंशे अस्मदो भ्यसा अमा' च सह अहह इत्यादेशो भवति ॥ अम्हहं होन्तउ आगदो ॥ आमा ।। अह भग्गा अम्हहं तणा ।। ३८० ॥ .: . . सुपा अम्हासु ॥ ८।४।३८१॥ .. अपभ्रंशे अस्मदः सुपा सह अम्हासु इत्यादेशो भवति । अम्हासु, ठिअं॥३८१॥