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होता है—-active भूतकाल - इसके उदाहरण तो हमको नव्य भारतीय आर्य भाषाओ से ही मिलेगे ।
उदा—निय मे 'दा' का active भूतकाल ऐसा होगा
ए. व
दिमि
दितेसि
दित
व व
दितम
दितेथ
दितन्ति
-
इसकी विकास रेखा इस प्रकार सूचित की गई है दित अस्मि - दितेमि, दिता स्म - दितम, इसका आधार भी मिलता है, क्योंकि प्रपु एव मे कही - श्रस्मि भी मिलता है, जो मूल रूप को सूचित करता है । जहाॅ कर्मणिभूत का सूचन करना हो वहाँ - क का आगम होता है जैसे दित 'दिया', दितग ( वा दितए ) ' दिया हुआ' | इस ग्रंथ के समय को लक्ष्य मे रखते हुए, भूतकाल का यह प्रयोग अत्यन्त महत्त्व का हो जाता है । नव्य भारतीय आर्य भाषा मे ऐसे प्रयोग प्रचलित है, और इस विपय मे झुलू ब्लोखने आलोचना की है (लॉदो आर्या पृ० २७६ ) । प्राचीन सिहली और अर्वाचीन सिंहली मे दुन्मो - (* दिन स्म ) 'हमने दिया, ' अर्वाचीन सिंहली मे कपुवेमि (* कल्पितको स्मि ) 'मैने काटा, ' बिहारी मे देखले हूँ- 'मैने देखा,' बॅगला तृ. पु. ए व देखिल 'उसने देखा' इ इ ।
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गिरनार के लेख की भाषा पश्चिमोत्तर और पूर्व से भिन्न भाषा प्रदेश सूचित करती है । इस भाषा की कुछ विशेषताए इसे साहित्यिक पालि के निकट ले जाती है । पश्चिमोत्तर का कुछ प्रभाव तो गिरनार मे मालूम होता ही है, और वह गुजरात सौराष्ट्र की भाषास्थिति के
'ही है । पालि प्रधानतया मध्यदेश मे विकसित साहित्यिक भाषा है, और उसका सम्बन्ध प्राचीन शौरसेनी से होगा । किन्तु मध्यदेश
जो अशोक के लेख है उनकी भाषा पूर्व की ही मगध की है । मध्यदेश में शोक की राजभाषा समझना दुसाध्य न होने से वहाँ के लेखो पर स्थानिक प्रभाव पड़ने की कोई आवश्यकता न थी । पश्चि मोत्तर और पश्चिम दक्षिण के प्रदेश दूर होने से, वहाँ की भाषा ने अशोक के शिलालेख की भाषा को उनके निजी ढाँचे मे डाली, यह भी उतना ही स्वाभाविक है ।