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उपस्थित हुए। इस प्रकार उन्होंने काव्यशास्त्रीय परम्परा को एक नवीन आयाम भी दिया तथा काव्यशास्त्र को अत्यधिक समृद्ध बनाया। काव्यविद्या के जिज्ञासु कवियों के लिए 'काव्यमीमांसा' की रचना की गई थी। काव्यरचना की व्यावहारिक शिक्षा सर्वप्रथम आचार्य राजशेखर ने ही प्रदान की, इसी कारण उनकी 'काव्यमीमांसा' उनको 'कविशिक्षा' के युग का प्रवर्तक सिद्ध करती है। 'काव्यमीमांसा' से कवियों की वह आचारसंहिता उपलब्ध होती है, जिसका स्वरूप बहुत विशद तथा व्यापक है।
'काव्यमीमांसा' में कवि को शिक्षा देने के लिए काव्यपुरुप, कवि, भावक, काव्यपाक, काव्यहरण तथा कविसमय आदि कवि के उपकारक विषय अन्तर्निहित हैं। कविचर्या के रूप में कवि के लिए आवश्यक विषयों का उल्लेख किया गया है, कवि के रहन-सहन तथा उसके दैनिक जीवन की अन्य विशेषताओं पर प्रकाश डाला गया है। तत्कालीन राजपरिवार भी कवियों एवम् विद्वानों को विशेष सम्मान प्रदान करते थे। यह सौभाग्य आचार्य राजशेखर को भी प्राप्त था। वे गुर्जरप्रतिहारवंशी शासक महेन्द्रपाल के राजगुरू थे। महेन्द्रपाल के पिता मिहिरभोज तथा पुत्र महीपाल का भी शासनकाल उन्होंने देखा था, उस प्रकार वे लम्बे समय तक राजपरिवारों से सम्बद्ध थे। इसी कारण 'काव्यमीमांसा' के 'कविचर्या' तथा 'राजचर्या' नामक प्रसङ्ग काव्य तथा शास्त्र में राजाओं की रूचि तथा उनके द्वारा किए गए कवियों के सम्मान के परिचायक कहे जा सकते हैं।
बहुमुखी प्रतिभा के धनी आचार्य राजशेखर काव्य तथा काव्यशास्त्र दोनों की रचना में परम प्रवीण थे। 'काव्यमीमांसा' के द्वारा उनका काव्यशास्त्र, भूगोलवेत्ता एवम् कविशिक्षक आचार्य का बहुरङ्गी व्यक्तित्व हमारे समक्ष उपस्थित हुआ है। वे विभिन्न शास्त्रों के ज्ञाता थे। 'काव्यमीमांसा' के कविरहस्य का षष्ठ अधिकरण व्याकरण शास्त्र से सम्बद्ध है। इसी ग्रन्थ में स्थान-स्थान पर वायुपुराण, ब्रह्माण्डपुराण, मनुस्मृति, कौटिलीय अर्थशास्त्र, वात्स्यायन के कामसूत्र आदि ग्रन्थों का आधार ग्रहण किया गया है। काव्यशास्त्र के गहन तथा व्यापक अध्ययन के कारण ही आचार्य राजशेखर ने 'काव्यमीमांसा' में विभिन्न आचार्यों के विचारों का उल्लेख किया है। 'काव्यमीमांसा' का देश विवेचन आचार्य राजशेखर के भूगोल के ज्ञान से परिचित कराता है, तो उनका कालविवेचन उनके सूक्षा प्रकृति निरीक्षण की झलक दिखलाता है।
आचार्य राजशेखर ने 'कविशिक्षा' को गम्भीर विषय के रूप में प्रस्तुत किया है और इसी क्रम में काव्यशास्त्र के अन्य विषयों का भी विवंचन किया है । इस दृष्टि से 'काव्यमीमांसा' को साहित्यशास्त्र के