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कविशिक्षक के रूप में आचार्य राजशेखर ने कवि को केवल काव्यनिर्माण के विशद स्वरूप में ही परिचित नहीं कराया, बल्कि उसको काव्यपाठ के औचित्य अनौचित्य से परिचित कराकर विदग्धगोष्ठियों में पहुँचकर काव्यपाठ प्रस्तुत करते हुए महाकवि तथा कविराज के उच्च स्तर तक ले जाने में भी अपना योगदान किया।