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करने वाले कवि को अवधानपूर्वक उनसे दूर रहने का निर्देश देती है। यथा अतिशीघ्र, अतिविलम्ब से, बहुत जोर से चिल्लाकर, अतिमन्द स्वर से बिना पदच्छेद किए हुए अतिमृदुता अथवा अतिकठोरता से काव्यपाठ नहीं किया जाना चाहिए। पृथक्-पृथक् पदों को मिलाकर तथा समस्त पदों को पृथक् करके पढ़ना भी काव्यपाठ को सदोष बना देता है। यह सभी दोष काव्यभाव की सरसता के प्रस्तुतीकरण में बाधक बन जाते हैं। आचार्य राजशेखर संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश सभी भाषाओं के काव्यपाठ का लालित्ययुक्त होना अनिवार्य मानते थे। विद्वानों के काव्यपाठ में ऐसा वैशिष्ट्य होना चाहिए कि वह विद्वानों के साथ-साथ साधारणजन को भी कर्णमधर प्रतीत हो 2
अपने यायावर स्वरूप से विभिन्न स्थानों में भ्रमण करते हुए आचार्य राजशेखर प्रत्येक स्थान के काव्यपाठ की विधि तथा वैशिष्ट्य, गुण तथा दोषों से सम्यक् परिचित हो चुके थे। अत: उनकी 'काव्यमीमांसा' तत्कालीन भाषा प्रयोग तथा विभिन्न प्रान्तों के काव्यपाठ की विशेषताओं पर पर्याप्त प्रकाश डालती है।
मगध, गौड, लाट, सुराष्ट्र, कर्णाट, द्रविड, काश्मीर, उत्तरापथ और पाञ्चाल आदि स्थानों के काव्यपाठ की विशेषताएँ 'काव्यमीमांसा' में वर्णित हैं ।३
1. अतितूर्णमतिविलम्बितमुल्बणनादं च नादहीनं च। अपदच्छिन्नमनावृत्तमतिमृदुपरूषं च निन्दति॥
काव्यमीमांसा- (सप्तम अध्याय) 2 आगोपालकमायोषिदास्तामेतस्य लेह्यता इत्थं कविः पठन्काव्यं वाग्देव्या अतिवल्लभः येऽपि शब्दविदो नैव नैव चार्थविचक्षणाः । तेषामपि सतां पाठः सुष्ठ कर्णरसायनम्।
काव्यमीमांसा- (सप्तम अध्याय) 3 काव्यमीमांसा (सप्तम अध्याय) में वर्णित विभिन्न देशों के पाठ :
मगध :- पठन्ति संस्कृत सुष्ठ कुण्ठाः प्राकृतवाचि ते। वाराणसीतः पूर्वेण ये केचिन्मगधादयः।। लाटदेश :- पठन्ति लटभं लाटाः प्राकृतं संस्कृतद्विषः जिह्वया ललितोल्लापलब्धसौन्दर्यमुद्रया। सुराष्ट्र त्रवणादि :- सुराष्ट्रत्रवणाद्या ये पठन्त्यर्पितसौष्ठवम् । अप्रभ्रंशावदंशानि ते संस्कृतवचांस्यपि।। कर्णाट देश :- रसः कोऽप्यस्तु काप्यस्तु रीतिः कोऽप्यस्तु वा गुणः। सगर्व'सर्वकर्णाटाष्टङ्कारोत्तरपाठिनः॥ द्रविण देश :- गद्ये पद्येऽथवा मिश्रे काव्ये काव्यमना अपि। गेयगर्भे स्थितः पाठे सर्वोऽपि द्रविडः कविः॥ काश्मीर :- शारदायाः प्रसादेन काश्मीरः सुकविर्जनः। कर्णे गुडूचीगण्डूषस्तेषां पाठक्रमः किमु॥ उत्तरापथ :- ततः पुरस्तात्कवयो ये भवन्त्युत्तरापथे। ते महत्यपि संस्कारे सानुनासिकपाठिनः॥