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स्पष्ट प्रतीति कराते हुए तथा क्रियापदों का स्पष्ट रूप से उच्चारण करते हुए होना चाहिए। उत्तम पाठ के इन सभी वैशिष्ट्यों का उद्येश्य काव्यबन्ध के भाव का सुस्पष्ट, चमत्कारी तथा सरस रूप में प्रस्तुतीकरण है। उत्तम पाठ का गुण सरस्वती की कृपा से प्राप्त होता है ।।
'काव्यमीमांसा' में काव्यपाठ करने के लिए तत्पर कवि को यह निर्देश भी दिया गया है उसका काव्यपाठ काव्य के गुणों के वैशिष्ट्य पर भी आधारित होना चाहिए। यथा प्रसाद गुण वाली कविता गम्भीरता से, ओजोमयी कविता उच्च स्वर से एवम् उभयगुण वाली रचना आवश्यकतानुसार गम्भीर और उच्च स्वर से पढ़ी जानी चाहिए
वर्गों के पाँच स्थानों-स्वर, काल, स्थान, प्रयत्न और अनुप्रदान-से उत्पन्न वर्गों का समुचित रूप से उच्चारण तथा अर्थ के अनुरोध से विराम उत्तम पाठ का रहस्य है ।।
'काव्यमीमांसा' में वर्णित उत्तम पाठ के गुण आज भी प्रासङ्गिक हैं। काव्यपाठ के गुणों को
प्रस्तुत करने के साथ ही काव्यमीमांसा' काव्यपाठ के दोषों से भी परिचित कराती है, तथा काव्यपाठ
1 ललितं काकुसमन्वितमुज्जवलमर्थवशकृतपरिच्छेदं श्रुतिसुखविविक्तवर्ण कवयः पाठं प्रशंसन्ति ॥
गम्भीरत्वमनैश्वर्यं निर्व्यढिस्तारमन्द्रयोः। संयुक्तवर्णलावण्यमिति पाठगुणाः स्मृताः ।। यथा व्याधी हरेत्पुत्रान्द्रंष्ट्राभिश्च न पीडयेत्। भीता पतनभेदाभ्यां तद्वद्वर्णान्प्रयोजयेत्॥ विभक्तयः स्फुटा यत्र समासश्चाकर्थितः। अम्लानः पदसन्धिश्च तत्र पाठः प्रतिष्ठितः॥ न व्यस्तपदयोरैक्यं न भिदां तु समस्तयोः। न चाख्यातपदम्लानिं विदधीत सुधी: पठन्।
काव्यमीमांसा - (सप्तम अध्याय) 2 पठितुं वेत्ति स परं यस्य सिद्धा सरस्वती
काव्यमीमांसा- (सप्तम अध्याय) 3 प्रसन्ने मन्द्रयेद्वाचं तारयेत्तद्विरोधिनि। मन्द्रतारौ च रचयेन्निर्वाहिणि यथोत्तरम् ॥
काव्यमीमांसा- (सप्तम अध्याय) 4. पञ्चस्थानसमुद्भववर्णेषु यथास्वरूपनिष्पत्ति अर्थवशेन च विरतिः सर्वस्वमिदं हि पाठस्य॥
काव्यमीमांसा- (सप्तम अध्याय)