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तथा निराकाङ्क्ष दो प्रकार का होता है। दूसरे वाक्य की आकाङ्क्षा होने पर साकाङ्क्षा तथा वाक्य का उत्तर उपस्थित हो जाने पर निराकाङ्क्षा काकु होती है। साकाङ्क्षा के तीन प्रकार आक्षेपगर्भा, प्रश्नगर्भा और वितर्कगर्भा हैं तथा निराकाङ्क्षा के तीन प्रकार विधिरूपा, उत्तररूपा तथा निर्णयरूपा हैं ।। साकाङ्क्षा की आक्षेपगर्भा निर्देश देने वाले का वाक्य होने पर निराकाङ्क्षा की विधिरूपा, साकाङ्क्षा की प्रश्नगर्भा उपदेश देने वाले का वाक्य होने निराकाङ्क्षा की उत्तररूपा, तथा साकाङ्क्षा की वितर्कगर्भा उपदेश देने वाले का वाक्य होने पर पर निराकाडक्षा की निर्णय रूपा में परिवर्तित हो जाती है। इस साकाङ्क्षा तथा निराकाङ्क्षा काकु भेद को आचार्य राजशेखर ने नियमनियन्त्रित काकु रूप में उल्लिखित किया है। तीन चार प्रकार की काकु का योग आचार्य राजशेखर द्वारा वर्णित अनियन्त्रित काकु है जिसके अनन्त भेद है।2 इस अनियन्त्रित काकु के दो भेद काव्यमीमांसा में वर्णित हैं- 'अभ्युपगमानुनय' तथा 'अभ्यनुज्ञोपहास' इनका नाम ही इनके अन्तर्गत मिश्रित भावों को प्रकट करने में सक्षम है।
काव्यमीमांसा में काव्यपाठ विवेचन विभिन्न राजसभाओं तथा विद्वद्-गोष्ठियों में उपस्थित रहकर आचार्य राजशेखर ने काव्यपाठ की सूक्ष्म से सूक्ष्म विशेषताओं पर दृष्टि रखी थी तथा महाकवि तथा कविराज की उपाधियों से अलङ्कृत वे स्वयम् काव्यपाठ में पारङ्गत थे। तत्कालीन समाज में कवि के काव्य का प्रचार भी विद्वद्गोष्ठियों के द्वारा ही होता था। श्रेष्ठ काव्य का मूल्याङ्कन राजसभाओं में विद्वानों के समक्ष ही होता था। अत: काव्यपाठ का विशिष्ट गुणों से युक्त होना अनिवार्य था, अन्यथा विद्वानों के समक्ष श्रेष्ठकाव्य भी अपना प्रभाव छोड़ने में असमर्थ हो सकता था। उत्तम पाठ काव्य को सर्वग्राह्य बना सकता था। कवि के लिए महत्वपूर्ण सूचनाओं की निधि के रूप में उपस्थित 'काव्यमीमांसा' इसी कारण एक ओर कवि को
1 'सा च द्विधा साकाङ्क्षा निराकाङ्क्षा च । वाक्यान्तराकाक्षिणी साकाङ्क्षा, वाक्योत्तरभाविनी निराकाङ्क्षा ।------- आक्षेपगर्भा, प्रश्नगर्भा वितर्कगर्भा चेति साकाङ्क्षा । विधिरूपा उत्तररूपा निर्णयरूपेति निराकाङ्क्षा' ।
काव्यमीमांसा - (सप्तम अध्याय) 2. 'ता इमास्तिस्त्रोऽपि नियतनिबन्धाः। तद्विपरीताः पुनरनन्ताः'
काव्यमीमांसा - (सप्तम अध्याय)