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________________ [45] आचार्य राजशेखर ने 'काव्यमीमांसा' में जिन वृत्तियों का उल्लेख किया है वह दृश्यकाव्य से सम्बद्ध कैशिकी आदि वृत्तियाँ ही हैं। इस विवेचन का आधार भरतमुनि का नाट्यशास्त्र ही है। सर्वप्रथम भरतमुनि के नाट्यशास्त्र में वृत्तियों का विस्तृत विवेचन प्राप्त हुआ। यह वृत्तियाँ विभिन्न नाट्यपद्धतियाँ ही थीं। प्राचीन काल में नृत्य के नाट्य का प्रमुख तत्व होने के कारण भिन्न प्रदेशों की भिन्न नृत्यपद्धतियाँ नाट्यप्रयोगों में भी वैविध्य उपस्थित कर देती थीं। भरतमुनि के परवर्ती आनन्दवर्धन, अभिनवगुप्त, धनञ्जय, राजशेखर, विश्वनाथ, भोजराज आदि के ग्रन्थों में भी वृत्तिविवेचन प्राप्त होता है। नाट्यशास्त्र के 'व्यापारः पुमर्थसाधको वृत्तिः' तथा दशरूपक के 'तदव्यापारात्मिका वृत्तिः' इत्यादि वचन स्पष्ट करते हैं कि नायकादि के व्यवहार की ही वृत्ति संज्ञा है। नाट्यशास्त्र के 'वृत्तयो नाट्यमातरः' तथा 'सर्वेषामेव काव्यानां वृत्तयो मातृकाः स्मृताः' इत्यादि उल्लेखों से यह भी सिद्ध होता है कि भरतमुनि के लिए वृत्तियों के अभाव में नाट्य अस्तित्वहीन थे। आचार्य अभिनवगुप्त तथा भोजराज आदि आचार्यों ने भी नाटकादि के पात्रों की चेष्टाओं को ही वृत्ति रूप में स्वीकार किया है। नाटक के पात्र अथवा काव्य के नायकादि शरीर, वचन तथा मन की जो विचित्रता युक्त चेष्टाएँ करते हैं,1 चित्त के विकास, विक्षेप, संकोच तथा विस्तार की दशा में यह पात्र जो व्यवहार करते हैं, वही वृत्तियाँ कहलाती हैं 2 1. 'कायवाङ्मनसां चेष्टा एव सह वैचित्र्येण वृत्तयः' नाट्यशास्त्र विंश अध्याय अभिनवगुप्त की वृत्ति 2 या विकाशेऽथ विक्षेपे सङ्कोचे विस्तरे तथा चेतसो वर्तयित्री स्यात् सा वृत्तिः साऽपि षडविधा । 34 । सरस्वती कण्ठाभरण - द्वितीय परिच्छेद
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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