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________________ [27] उन्होंने सर्वप्रथम छन्दोबद्ध वाणी का उच्चारण किया और इसी कारण कवि कहलाए। स्नान करने के पश्चात् लौटी सरस्वती को महामुनि बाल्मीकि ने काव्यपुरुष के स्थान से अवगत कराया। अतः प्रसन्न बाग्देवी की प्राप्त काव्यप्रेरणा से बाल्मीकि ने " मा निषाद-- का उच्चारण किया तथा 'रामायण' की रचना की। इस काव्यपुरुषाख्यान में काव्य के अङ्ग प्रत्यङ्ग काव्यपुरुष के शरीर के अङ्ग प्रत्यङ्ग के रूप में दृष्टिगत होते हैं । 1 शब्द और अर्थ काव्यपुरुष के शरीर हैं, रस आत्मा है, समता, प्रसाद, माधुर्य, औदार्य एवम् ओजस् उसके गुण हैं, अनुप्रास, उपमा आदि उसके अलङ्कार हैं, उक्ति चातुर्य वचन हैं, छन्द रोम हैं तथा प्रश्नोत्तर, प्रहेलिका आदि वाणी की क्रीड़ाएँ हैं। काव्य का भी तो ऐसा ही स्वरूप काव्यशास्त्र में परिलक्षित होता है। काव्यपुरुष की यात्रा कथा में प्रवृत्तियों, वृत्तियों एवम् रीतियों का वर्णन है। काव्यरचना शैली का विकास क्रमशः ही हुआ, उसमें शनैः शनैः सरलता तथा सुधार परिलक्षित होने लगे । अन्त में वैदर्भी रीति की रचना सर्वोत्कृष्ट रही, क्योंकि इससे काव्यपुरुष में प्रसाद गुण अधिक मात्रा में उत्पन्न हुआ। प्रजापति ब्रह्मा एवम् वाग्देवी सरस्वती से काव्य का सम्बन्ध सिद्ध करता हुआ यह काव्यपुरुषाख्यान अधिकांशतः काल्पनिक होने पर भी काव्यविद्या के जिज्ञासु शिष्यों के सम्मुख काव्य की अलौकिक महत्ता को सिद्ध करता है तथा काव्यविद्या को अधिकाधिक ग्राह्य बनाता है। इस रोचक आख्यान का प्रमुख लक्ष्य काव्यविद्यास्नातकों को काव्यविद्या के ज्ञान की ओर प्रेरित करना है । कविशिक्षा के ही लिए लिखे गए इस 'काव्यमीमांसा' नामक ग्रन्थ के अधिकांश अंशों के समान काव्यपुरुषाख्यान भी 'कविशिक्षा' के ही लक्ष्य को परिपूर्ण करता है। इस प्रकार यह आख्यान काल्पनिक होते हुए भी सार्थक है। 1. "शब्दार्थी ते शरीरं, संस्कृतं मुखं प्राकृतं बाहु जघनमपभ्रंशः, पैशाचं पादौ, उरो मिश्रम् समः प्रसन्नो, मधुर उदार ओजस्वी चासि । उक्तिचणं च ते वचो, रस आत्मा, रोमाणि छन्दांसि प्रश्नोत्तर प्रवह्निकादिकं च वाक्केलिः, अनुप्रासोपमादयश्च त्वामलङ्कुर्वन्ति ।" काव्यमीमांसा (तृतीय अध्याय) " -
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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