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________________ [305] दृष्टिगत होता है, किन्तु यह आश्चर्यजनक है कि आचार्य राजशेखर ने ऋतुओं के वर्णनीय विषय प्रस्तुत करते समय महाकवि कालिदास के श्लोकों को उद्धृत नहीं किया है। काव्यमीमांसा में वर्णित शरद् ऋतु वृक्षजगत् का परिवर्तन : कमलों, कुमुदों, उत्पलों का विकास, बन्धूक, बाण, असन, केसर, शेफालिका, सप्तपर्ण, कास, भाण्डीर, सौगन्धिक और मालती - इन वृक्षों में पुष्पप्रसव । क्यारियों में पककर पीले कलम धान । पककर नीले से हुए आमले। पककर फूट जाने से सुगन्धित फूटककड़ी। पककर खट्टे, जीर्ण इमली के फल । पशुपक्षियों की गतिविधियाँ : शरद् ऋतु में खंजन पक्षियों के दर्शन होते हैं। स्वच्छ जलाशयों के तटों पर हंस, कारण्डव, चक्रवाक, सारस, क्रौञ्च आदि जलचर विहार करते हैं । कलहंसों के झुण्ड मानसरोवर से लौटकर अपनेअपने निवासों में आ जाते हैं। खुरों से पृथ्वी को कुरेदते हुए मदोन्मत्त साँड़, दाँतों से नदी तटों को उखाड़ते हुए मस्त हाथी और पुराने सींगों को गिराते हुए रुरु मृग दिखाई देते हैं। नदियों में जल कम होने से उनके बालुकामय तट पर जल से बाहर निकलकर कछुए विश्राम करते हैं। उथले निर्मल जल में दौड़ती हुई मछलियों का पीछा करते हुए बगुले उनपर उग्र दाँतों से प्रहार करते हैं। मछलियों के भागते हुए छोटे बच्चों पर कुरर पक्षियों के आक्रमण । मदरहित मयूरों की गर्जना । कुररों और भ्रमरों की उन्मत्तता । शरद् ऋतु के अन्य वैशिष्ट्य : नदी, नद, झील, ताल, सरोवर आदि का स्वच्छ, मधुर जल । तट का कीचड़ सूख जाता है। स्वाति की बूँदों से सीपियाँ शुभ्र मोतियों का गर्भ धारण करती हैं। बालुकामय तट पर सीपियों की छाप
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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