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हो केवल प्रवेशक और विष्कम्भक न हों, उसे सट्टक कहते हैं। 'सट्टक' केवल प्राकृत भाषा में ही
होता है।
राजा महेन्द्रपाल के समय में रचित इनका 'बालरामायण' नामक नाटक पूर्वरामचरित्र पर आधारित है। सम्प्रति केवल दो अङ्को में उपलब्ध 'बालभारत' महाभारत की कथा पर आधारित है तथा
राजा महीपाल के समय में रचित नाटक है। 'विद्धशालभञ्जिका' सर्वभाषाविचक्षण, अद्भुत भाषाकौशल
वाले कविराज राजशेखर द्वारा रचित चार अङ्कों वाली नाटिका है। यह नाटिका कलचुरी नरेश
युवराजदेव 'केयूरवर्ष' के शासनकाल में रची गई।
आचार्य राजशेखर की अन्तिम रचना 'काव्यमीमांसा' ने उन्हें आचार्यत्व प्रदान किया। यह
काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ विभिन्न मौलिक विपयों से परिपूर्ण होने के कारण विवेचना के योग्य ग्रन्थों की श्रेणी में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान बना चुका है। आचार्य राजशेखर को सर्वाधिक ख्याति इसी ग्रन्थ से प्राप्त हुई।
1(क) सो सट्टओ त्तिभणइ दूरं जो णाडिआइ अणुहरइ। किं उण पवेसविक्खम्भंकाइ केवलं ण दीसन्ति।
(कर्पूरमञ्जरी-प्रस्तावना, - 1-6) (ख) "सट्टकश्च कैश्चित्। विष्कम्भक-प्रवेश-रहितो यस्त्वेकभाषया भवति असंस्कृतप्राकृतया सट्टको नाटिकाप्रतिमः।"
(काव्यानुशासन - हेमचन्द्र, पृष्ठ-432)