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________________ [269] आयोजन, विदेशी विद्वानों का सम्मान तथा नौकरी के इच्छुक लोगों को नौकरी देना आदि राजा के कार्य गुणीजन के यथोचित सम्मान से सम्बद्ध थे क्योंकि पुरुषरत्नों का आधार राजा ही है। 1 ‘काव्यमीमांसा' में आचार्य राजशेखर ने चार प्राचीन राजाओं - वासुदेव, सातवाहन, शूद्रक और साहसाङ्क का उल्लेख किया है जो विद्वानों तथा कवियों को मुक्तहस्तदान देकर सम्मानित करने के साथ ही स्वयं भी संस्कृत आदि भाषाओं के विद्वान्, कवि अथवा प्रबन्धकर्ता के रूप में प्रसिद्ध थे। इसी कारण आचार्य राजशेखर ने समसामयिक अन्य राजाओं से इनके पदचिह्नों पर चलकर अपने राज्य को साहित्यिक दृष्टि से समृद्ध बनाने का आग्रह किया 12 विभिन्न राजसभाओं के आयोजन के प्रत्यक्षदृष्टा आचार्य राजशेखर यह भली भाँति जानते थे कि राजा के नेतृत्व में आयोजित सभा के लिए सामान्य सभामण्डप का औचित्य नहीं है। इसी कारण उन्होंने विशिष्ट सभामण्डप का आदर्श स्वरूप 'काव्यमीमांसा' में प्रस्तुत किया। 'राजसभा में सोलह खम्भे, चार द्वार तथा आठ बरामदें हों उस सभा से लगा हुआ ही राजा का केलिगृह हो। सभा के मध्य में ही चार खम्भों के बीच एक हाथ ऊँचा मणिजटित चबूतरा हो, उस पर राजा का आसन हो 3 तत्कालीन समाज में सभी भाषाओं के कवि सम्मानित थे - संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश तथा पैशाची भाषाएँ प्रधान रूप से प्रचलित थीं 'काव्यमीमांसा' में राजदरबार में आयोजित सभा का अनुपम वर्णन प्रस्तुत है। भिन्न भिन्न भाषाओं के कवियों और विभिन्न कलाकारों के लिए बैठने के क्रम का निर्देश दिया गया है । सर्वप्रथम कवियों का स्थान निर्दिष्ट है तत्पश्चात् अन्य कलाकारों का । किस भाषा के कवि की पंक्ति - 1. अन्तरान्तरा च काव्यगोष्ठीं शास्त्रवादाननुजानीयात् । मध्वपि नानवदंशम् स्वदते। काव्यशास्त्रविरतौ विज्ञानिष्वभिरभेत । देशान्तरागतानां च विदुषामनन्य द्वारा मङ्गम् कारयेदौचित्यद्यावत्स्थितिं पूजां च । वृत्तिकामाश्चोपजपेत् संगृहणीयाच्च । पुरुषरत्नानामेक एव राजोदन्यान्भाजनम् । (काव्यमीमांसा दशम अध्याय) वासुदेव सातवाहनशूद्रक साहसाङ्कादीन्सकलान् सभापतिन्दानमानाभ्यामनुकुर्यात्। तुष्टपुष्टाशास्य सभ्या भवेयुः स्थाने च पारितोषिकं लभरेन् । लोकोत्तरस्य काव्यस्य च यथाहां पूजा कवेर्वा । (काव्यमीमांसा दशम अध्याय) 3 सापोडशभिः स्तम्भैश्चतुर्भिद्वरिरष्टभिर्मत्तवारणीभिरूपेता स्यात् तदनुलग्नम् राज्ञः केलिगृहं मध्येसभं चतुःस्तम्भान्तरा हस्तमात्रोत्सेधा सर्माणभूमिका वेदिका । तस्यां राजासनम् । (काव्यमीमांसा दशम अध्याय) -
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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