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________________ [266] राजशेखर का कविचर्याप्रकरण राज्याश्रित कवियों की ऐश्वर्यसम्पन्नता का स्वरूप प्रस्तुत करता है। उनके निवासस्थान बाग बगीचों, फव्वारों, सुन्दर सरोवरों, वापियों आदि से शोभित रहते थे। उनमें विविध प्रकार के पशु पक्षी, कृत्रिम पर्वत, विविध पुष्पवृक्ष एवम् लता मण्डप आदि रहते थे।1 इन समृद्ध कवियों के काव्यबन्ध यशस्वी राजाओं की कीर्ति को सुरक्षित करते थे तथा यथार्थ इतिहास का ज्ञान भी कराते थे। राज्याश्रय से कभी-कभी कवि को कुछ हानि भी होती रही होगी। चाहे अल्पमात्रा में ही क्यों न हो राज्याश्रय से कवि की स्वतन्त्रता में बाधा भी उत्पन्न होती रही होगी। कुछ कवि अर्थलोभ से राज्यसभाओं में प्रवेश करके राजाओं का झूठा यशगान तथा काव्यकला का दुरूपयोग भी करते थे। कभी-कभी कविगण अपने आश्रदाता राजा तथा उसकी प्रजा की रूचियों को देखते हुए उन्हीं के अनकल भाषा तथा विषय में काव्यरचना करते थे। यद्यपि आचार्य राजशेखर ने काव्यमीमांसा में कवि के लिए दोनों पक्ष स्वीकार किए हैं। (क) कवि को अपने स्वामी अथवा राजा की रूचि का ध्यान अवश्य रखना होगा ? राजा अपनी रूचिसम्बद्ध रचनाओं के आधार पर ही कवि को आश्रय देते रहे होंगे। (ख) कवि को लोकरूचि तथा राजा की रूचि के साथ ही अपनी रूचि का भी ध्यान अवश्य रखना चाहिये। आत्मतिरस्कार कवि के काव्य की श्रेष्ठता के लिये श्रेयस्कर नहीं है। इस आधार पर 'काव्यमीमांसा' से तत्कालीन राज्याश्रित दो प्रकार के कवियों का स्वरूप स्पष्ट होता है-कुछ कवि पूर्णत: राजा की रूचि पर आश्रित रहे होंगे। किन्तु कुछ ने राज्याश्रित होकर भी अपनी प्रतिभा के बल पर आत्मस्वतन्त्र्य को सुरक्षित रखा होगा। तस्य भवनं सुसंमृष्टं, ऋतुषट्कोचितविविधस्थानम् अनेकतरूमूलकल्पितापाश्रयवृक्षवाटिकं, सक्रीडापर्वतकं, सदीर्घिकापुष्करिणीकं, ससरित्समुद्रावर्तकं, सकुल्याप्रवाहम् सवर्हिणहरिणहारीतं ससारसचक्रवाकहंसम् सचकोरक्रौञ्चकुररशुकसारिकं, धर्मक्लान्तिचौरं, सभूमिधारागृहयन्त्रलतामण्डपकं, सदोलाप्रेडं च स्यात् । (काव्यमीमांसा - दशम अध्याय) 2 "किं रूचिर्लोकः परिवृदो या . (काव्यमीमांसा - दशम अध्याय) 3. जनापवादमात्रेण न जुगुप्सेत चात्मनि । जानीयात्स्वयमात्मानं यतो लोको निरङ्कशः॥ (काव्यमीमांसा - दशम अध्याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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