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________________ [256] है। इसके लिए कवि को पक्षपात तथा अभिमान आदि दुर्गुणों से दूर रहना चाहिए। पक्षपाती अपने काव्य के दोषों को गुणों के रूप में तथा दूसरों के काव्य के गुणों को दोपरूप में देखता है।। 'काव्यमीमांसा' से कवि को अपने काव्य की सुरक्षा हेतु महत्वपूर्ण निर्देश प्राप्त होते हैं, वे काव्य की यथार्थ समालोचना से ही अधिकांशतः सम्बद्ध हैं । जो यथार्थ समालोचक न हों, उनके समक्ष अपने काव्य का विवेचन हानिकर ही है। अतः काव्यरचना के पश्चात् ही समसामयिक साधनों द्वारा उसके प्रचार, प्रसार की आवश्यकता सभी युगों में होती है। अकेले किसी व्यक्ति के समक्ष अथवा कविमानी के समक्ष काव्य प्रस्तुत करना-काव्य के अस्तित्व के लिए ही हानिकर है। आचार्य राजशेखर निष्पक्ष काव्यसमालोचना हेतु कवि द्वारा स्वयं अपने काव्य की विवेकपूर्ण परीक्षा के पश्चात् भी दूसरों से काव्यपरीक्षा कराना आवश्यक मानते थे।2 तत्कालीन समाज में काव्यगोष्ठियाँ काव्यप्रचार का विशिष्ट साधन थीं जिनमें प्रवेश कर कवि श्रेष्ठ समालोचकों द्वारा काव्य की परीक्षा कराते थे तथा उसकी सुरक्षा भी सुनिश्चित करते थे। प्रत्येक युग के समान आचार्य राजशेखर के काल में भी यथार्थ समालोचकों की संख्या कम ही थी। अत: कभी-कभी कवि के सत्काव्य को महती क्षति पहुँचाने वाले काव्यालोचक उपलब्ध हो जाते थे, जो सत्काव्य में भी दोष ही दोष देखते थे तथा स्वयम् अपने शब्दों, अर्थों द्वारा कवि के काव्य को परिवर्तित भी कर देते थे कवि के मित्र, सम्बन्धियों द्वारा प्रचार के लिए काव्य का पाठ तथा प्रशंसा की तो जाती थी, किन्तु यह सम्यक समालोचना नहीं थी। 1. न च स्वकृति बहु मन्येत, पक्षपातो हि गुणदोषौ विपर्यासयति । न च दृप्येत् । दर्पलवोऽपि सर्वसंस्कारानुच्छित्ति। काव्यमीमांसा - (दशम अध्याय) 2 न नवीनमेकाकिनः पुरतः। स हि स्वीयं ब्रुवाण: कतरेण साक्षिणा जीयेत।---परैश्च परीक्षयेत्। यदुदासीन: पश्यति न तदनुष्ठातेति प्रायो वादः। काव्यमीमांसा - (दशम अध्याय) 3. इदं हि वैदग्ध्यरहस्यमुत्तमं पठेन्न सूक्तिं कविमानिनः पुरः। न केवलं तां न विभावयत्यसौ स्वकाव्यबन्धेन विनाशयत्यपि। काव्यमीमांसा - (दशम अध्याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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