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________________ [19] नाट्यशास्त्र आदि का आधार उनके द्वारा ग्रहण किया गया है। काव्यशास्त्र के भी वह परमज्ञाता थे, इसी कारण काव्यशास्त्र के प्राचीन आचार्यों का उल्लेख उन्होंने 'काव्यमीमांसा' में किया है। उनका भौगोलिक ज्ञान उनकी यात्रा करने की यायावरीय प्रवृत्ति को स्पष्ट करता है। आचार्य राजशेखर इस धारणा के समर्थक थे कि कवि का काव्य उसके स्वभाव को अवश्य प्रतिबिम्बित करता है। इसी कारण वह वाणी, मन तथा शरीर की पवित्रता को कवि के लिए आवश्यक मानते थे।1 काव्यमीमांसा में वर्णित 'कविचर्या' प्रकरण स्पष्ट करता है कि उन्होंने अपने जीवन को भी समय के नियमित विभाग से तथा वाणी, मन तथा शरीर की पवित्रता से सुन्दर तथा यशस्वी बनाया होगा। वे परिष्कृत रुचि सम्पन्न प्रकृतिप्रेमी थे, 'काव्यमीमांसा' में वर्णित कवि का आवास उनके इन्हीं गुणों को प्रकट करता है वह काव्य की सभी विद्याओं, उपविद्याओं के स्वयं भी ज्ञाता थे और कवियों को काव्यरचना से पूर्व उनके ज्ञान प्राप्त करने का उपदेश भी देते थे 1 आचार्य राजशेखर की विदुषी पत्नी : आचार्य राजशेखर उदार विचारों के विद्वान् व्यक्ति थे। वे स्त्रियों की भी विद्वता का सम्मान करते थेट आचार्य राजशेखर की पत्नी अवन्ति सुन्दरी चौहानवंश की, क्षत्रियों के मूर्धन्य कुल की थीं, 3 जिनसे आचार्य राजशेखर ने अन्तजांतीय अनुलोम विवाह किया था। अवन्तिसुन्दरी संस्कृत, प्राकृत तथा जनभाषा की परम विदुषी महिला थीं। अलङ्कारशास्त्र में भी वे निपुण थीं। पाक के विषय में उन्होंने आचार्य 1. "स यत्स्वभावः कविस्तदनुरूपम् काव्यम्।" " अपि च नित्यं शुचिः स्यात् । " 2 " पुरूषवत् योषितोऽपि कविभवेयुः, संस्कारो ह्यात्मनि समवैति । न स्त्रैणं पौरुषं वा विभागमपेक्षते । " काव्यमीमांसा ( दशम अध्याय) काव्यमीमांसा ( दशम अध्याय) 3. " चाहुआणकुलमोलिमालिआ राउसेहर कइंदगेहिणी भतुणो किइमवंतिसुन्दरी सा पउंजइडमेअमिच्छइ । (कर्पूरमञ्जरी, 1-11)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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