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________________ [235] जाए कि यह कवि की नवीन सृझ एवं नवीन कल्पना है वह वस्तु या अर्थ पूर्व कवि द्वारा वर्णित हो चुका हो अथवा नहीं, नवीन तथा रमणीय ही है। इस प्रकार सहृदय ही काव्य की मौलिकता तथा रमणीयता के प्रमाण हैं। नवीनता तथा मौलिकता का सर्वत्र स्थान है-आनन्दवर्धन के इस विचार पर पूर्वपक्ष को शङ्का है-कवि जिन सुखादि तथा सुखादि के साधन स्रक्, चन्दन, वनितादि का नायकादि में आरोप करके वर्णन करता है वे समस्त अनुभवकर्ताओं के लिए एक रूप हैं और इस प्रकार सभी वर्णनीय पदार्थ अपने समान रूप में ही वर्णित होते हैं और वे परिमितता के कारण अब नवीन नहीं रह गए हैं-वरन् पूर्व कवियों को सभी अर्थ ज्ञात हो चुके हैं। ऐसी स्थिति में नवीनता तथा मौलिकता की बात करना व्यर्थ है। जो अर्थ को नवीन तथा मौलिक कहते हैं वे केवल अभिमान करते हैं। अर्थ में मौलिकता तथा नवीनता नहीं होती, केवल उक्तिवैचित्र्य ही होता है। इस विषय में यही कहा जा सकता है कि अर्थ का प्राचीन तथा पूर्ववर्णित होना तो आनन्दवर्धन स्वयं ही स्वीकार कर चुके हैं-फिर भी ध्वनि का स्पर्श इन प्राचीन अर्थों को ही नवीन बना देता है। अर्थ नवीन तथा मौलिक न हो तो भी वे कवि के महत्त्वपूर्ण वर्णन द्वारा नवीन तथा मौलिक हो जाते हैं-आचार्य आनन्दवर्धन को यह भी स्वीकार नहीं है कि केवल वस्तु के सामान्य रूप का ही वर्णन होता है। उनकी धारणा है कि सामान्य रूप का भी जो वर्णन होता है भले ही वह सभी अनुभव कर्ताओं के लिए समान हो किन्तु उसमें कवि के अनुभव का अपना विशेष रूप भी सम्मिलित रहता है, इस प्रकार जो भी वर्णन किया जाता है कवि के अपने अनुभव के वैशिष्ट्य सहित ही। प्रत्येक कवि की प्रतिभा के वैचित्र्य से उसके द्वारा वर्णित अर्थ में भी वैचित्र्य तथा नवीनता आ ही जाती है इस प्रकार अर्थ कभी भी परिमित नहीं हो सकते। यदि कवियों में प्रतिभागुण है तो अर्थों में अनन्तता अवश्य होगी, वे कभी भी ससीम नहीं हो सकते। इसके साथ ही वचन का वैचित्र्ययुक्त होना उक्तिवैचित्र्य है और शब्द, अर्थ का, वाच्य तथा वचन का अविनाभाव सम्बन्ध होने से वचन का वैचित्र्य वाच्य के वैचित्र्य को 1 ध्वनेरित्थं गुणीभूतव्यङ्ग्यस्य च समाश्रयात् न काव्यार्थविरामोऽस्ति यदि स्यात्प्रतिभागुणः ॥ 6 ॥ ध्वन्यालोक - (चतुर्थ उद्योत)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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