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________________ [219] व्युत्क्रम : जो अर्थ किसी एक क्रम से किसी रचना में वर्णित हो उसका उसी के विपरीत क्रम से वर्णन व्युत्क्रम है।1 विशेषोक्ति : किसी सामान्य अर्थ को उसी प्रकार से ग्रहण करके उसका किञ्चित् विशेष रूप से वर्णन विशेषोक्ति कहलाता है ? उत्तंस : पूर्व रचना में जो अर्थ गौड़ रूप में वर्णित हो उसी का परवर्ती रचना में मुख्य अर्थ के रूप में वर्णन करना उत्तंस है। नटनेपथ्य : किसी रचना में वर्णित किसी एक अर्थ को कथन भेद से विपरीत कर देना अर्थात् वह भिन्न प्रतीत होने लगे ऐसा बना देना नटनेपथ्य है ।। जैसे एक ही नट दूसरे-दूसरे रूप में सामने आता है-वैसे एक ही वस्तु कथन भेद से भिन्न-भिन्न रूप में सामने आती है। अर्थहरण के आलेख्यप्रख्य नामक भेद के आठ अवान्तर भेदों में से यह एक विशिष्ट भेद माना गया है, किन्तु अन्य अवान्तर भेदों में अपना जो भिन्न-भिन्न वैशिष्ट्य है, उस प्रकार का इसमें कोई वैशिष्टय दृष्टिगत नहीं होता। इसमें केवल आलेख्यप्रख्य की सामान्य विशिष्टता 'भणितिवैचित्र्य से किसी अर्थ का भिन्न प्रतीत होना' ही दिखलाई देती है। एकपरिकार्य : जहाँ एक ही अर्थ हो और अलङ्कार भी दोनों रचनाओं में एक ही हों केवल दोनों रचनाओं की अलङ्कार्य वस्तु ही भिन्न-भिन्न हो वह एक परिकार्य नामक भेद है 5 -काव्यमीमांसा - (त्रयोदश अध्याय) में सभी 1 क्रमेणाभिहितस्यार्थस्य विपरीताभिधानं व्युत्क्रमः' 2 सामान्यनिबन्धे विशेषाभिधानं विशेषोक्तिः 3 उपसर्जनस्यार्थस्य प्रधानतायामुत्तंसः 4. तदेव वस्तूक्तिवशादन्यथा क्रियत इति नटनेपथ्यम् 5. परिकरसाम्ये सत्यपि परिकार्यस्यान्यथात्वादेकपरिकार्य:
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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