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[200] दूसरे के काव्य के पदग्रहण को हेमचन्द्र, वाग्भट्ट, क्षेमेन्द्र तथा विनयचन्द्र ने भी स्वीकार किया है, किन्तु आचार्य राजशेखर शब्दहरण को पद या पाद किसी भी रूप में कवि की प्रतिभा पर ही निर्भर मानते हैं। कवि किसी अन्य के काव्य से शब्द ग्रहण करे तो भी उसके काव्य में उसकी अपनी प्रतिभा का वैशिष्ट्य होना ही चाहिए क्योंकि काव्यनिर्माण प्रतिभा के उन्मेष का ही स्वरूप है। सच्चे अर्थों में कवि कहलाने के लिए कवि को अपनी प्रतिभा पर निर्भर रहना चाहिए, किसी अन्य की प्रतिभा पर नहीं। दूसरों की प्रतिभा द्वारा रचित काव्यों पर अपने काव्य निर्माण के लिए निर्भर रहना काव्यनिर्माण के प्रयोजन कीर्तिप्राप्ति में बाधक है।
कुछ आचार्य शब्दहरण के जिन प्रकारों को हरण न कहकर स्वीकरण कहते हैं, वे भी आचार्य राजशेखर की दृष्टि में हरण ही हैं। केवल उनका नाम ही परिवर्तित कर दिया गया है। पूर्व कवि के श्लोक के किसी एक पाद को उस कवि द्वारा कही गई बात की विपरीत बात के कारण के रूप में ग्रहण करना और इस प्रकार एक पाद पूर्व कवि का ग्रहण करके तीन पादों की रचना करना तथा किसी कवि के श्लोक के केवल एक पाद का परिवर्तन करके तीन पादों को उसी प्रकार ग्रहण करना-हरण के इन दोनों रूपों को आचार्यों ने हरण न कहकर स्वीकरण अर्थात् पूर्व कवि की कही गई बात को स्वीकार करना माना है। किन्तु आचार्य राजशेखर की दृष्टि में यह परिवर्तित नाम वाले केवल हरण ही हैं। यह राजशेखर को सम्भवतः अधिक स्वीकार्य भी नहीं हैं, क्योंकि शब्दहरण के जो रूप उन्हें अधिक स्वीकार्य हैं, उनको वे कवित्व कहते हैं। इसी प्रकार आधे पद्य का हरण तथा आधे पद्य का अस्तव्यस्त रूप में हरण भी उनकी दृष्टि में हरण ही है, स्वीकरण नहीं।
हेमचन्द्र, वाग्भट्ट, भोज, क्षेमेन्द्र तथा विनयचन्द्र आदि सभी आचार्य पादहरण को स्वीकार करते हैं । वाग्भट्ट तथा भोज तो एक से तीन पादों तक को स्वीकरणीय मानते हैं, किन्तु आचार्य राजशेखर की दृष्टि में तीन पादों का हरण पूरे पद्य के ही हरण के समान है। आचार्य राजशेखर पादों के भी हरण को स्वीकार करते हैं, यदि वे केवल सामान्य से पाद हों। यदि उन्हीं में विशिष्टता का समावेश हो तब नहीं, फिर भी पाद का हरण कोई कवित्व न होकर हरण ही है।
___ कभी-कभी शब्द दूसरों से लिए जाने पर भी कवि द्वारा अपने ही ढंग से प्रस्तुत किए जाने के कारण कवि द्वारा किए गए हरण को न प्रकट करके उसके कवित्व को ही प्रकट करते हैं। कवित्व का