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________________ [192] कवि के काव्य से शब्द, अर्थ के ग्रहण से सम्बद्ध हरण का मूल आनन्दवर्धन के विवेचन में प्राप्त नहीं है, बल्कि केवल पूर्वकवि के काव्य से समता रखने वाले शब्दों, अर्थों की अन्य कवि के काव्य में प्राप्ति रूप शब्दार्थ साम्य का मूल यहाँ से प्राप्त हो सकता है। आचार्य हेमचन्द्र, वाग्भट्ट, क्षेमेन्द्र, भोजराज, विनयचन्द्र तथा पण्डितराज जगन्नाथ के ग्रन्थों में भी इस विषय का विवेचन उपस्थित तो हुआ, किन्तु आचार्य राजशेखर के बाद कविशिक्षा से सम्बद्ध इस विषय का इतना सुनियोजित तथा परिपूर्ण विवेचन प्रस्तुत न हो सका। . __ अनूतन शब्दों, अर्थों का उक्तिवैचित्र्य से नवीन रूप में उल्लेख वक्रोक्तिजीवितकार कुन्तक का विचित्र मार्ग है1-यदि नवीन शब्द, अर्थ से मनोहारी सुकुमार काव्यमार्ग सत्कवियों का मार्ग है तो अनूतनोल्लेख भी महाकवि की प्रतिभा के सम्पर्क से मनोहारी रूप में सहृदयों के समक्ष उपस्थित होते हैं। पूर्ववर्णित शब्दों, अर्थों के नवीन मौलिक रूप में वर्णन का कुन्तक का विचार आनन्दवर्धन के पूर्ववर्णित शब्दों, अर्थों के भी मौलिक रूप में प्रस्तुतीकरण के विचार से साम्य रखता है। आचार्य हेमचन्द्र ने उपजीवन के विवेचन में पूर्णरूप से आचार्य राजशेखर के विवेचन को आधार बनाया है तथा अर्थहरण में प्रतिबिम्बकल्प, आलेख्यप्रख्य, तुल्यदेहितुल्य, परपुरप्रवेशसद्श तथा शब्दहरण में पद, पाद तथा उक्त्युप जीवन को समाविष्ट किया है। __ भोजराज ने काव्यपाठ का 'पठिति' रूप में विवेचन किया है किन्तु अन्य आचार्यों का पठिति से तात्पर्य उपजीवन से है-उनका यह कथन अपने सरस्वतीकण्ठाभरण ग्रन्थ में उपजीवन के विचार को भी स्थान देता है। इस प्रकार भोजराज द्वारा पठिति का उल्लेख दो अर्थों में किया गया है-एक का सम्बन्ध काव्यपाठ से है-और द्वितीय का पूर्वरचना के पद, पादार्ध, भाषा आदि के थोड़े परिवर्तन सहित पाठ से। पठिति के इस द्वितीय रूप का सम्बन्ध शब्द हरण तथा अर्थहरण से है। 1. यदप्यनूतनोल्लेखं वस्तु यत्र तदप्यलम् उक्तिवैचित्र्यमात्रेण काष्ठां कामपि नीयते । 38 । प्रथम उन्मेष वक्रोक्तिजीवित (कुन्तक) 2 काकुस्वरपदच्छेदभेदाभिनयकान्तिभिः, पाठो योऽर्थविशेषाय पठिति: सेह षड्विधा । 56 । अपरे पुनः पठितिमन्यथा कथयन्ति। पदपादार्द्धभाषाणामन्यथाकरणेन यः पाठः पूर्वोक्तसूक्तस्य पठितिं तां प्रचक्षते । 57। द्वितीय परिच्छेद सरस्वती कण्ठाभरण (भोजराज)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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