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________________ [174] स्वीकृति वृक्षदोहद है।। वृक्षदोहद वर्णन की परम्परा राजशेखर से बहुत पूर्व कालिदासादि के काव्यों में अधिकता से पाई जाती है। किन्तु वृक्षदोहद को आचार्य राजशेखर के परवर्ती आचार्यों केशवमिश्र तथा विश्वनाथ ने ही कविसमय माना है। कविसमय का विस्तृत वर्णन करने पर भी राजशेखर ने कविसमय के प्रसंग में वृक्षदोहद का उल्लेख नहीं किया है। कविसमय की सर्वप्रथम पूर्ण रूप में विवेचना करने वाले आचार्य राजशेखर के ग्रन्थ में उसकी विवेचना न होने का कारण विचारणीय है। क्या राजशेखर की दृष्टि में वृक्षदोहद शास्त्रीय और लोकिक थे? क्या वस्तुत: स्त्रियों के संपर्क से वृक्षों में विकास रूप किसी सत्यता का उस समय अस्तित्व था? यद्यपि स्त्रियों के प्रयत्न से असमय पुष्पोद्गम कल्पना मात्र ही प्रतीत होता है, सत्य नहीं। वृक्षों के असमय विकास का स्त्रियों से सम्पर्क तो केवल कवियों ने ही जोड़ा है । वस्तुत: यह लोक की अथवा शास्त्रीय सत्यता थी या नहीं इसके प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। प्रमाणों के अभाव में केवल कवियों द्वारा ही वर्णित इन विषयों को अलौकिकता के कारण कविसमय रूप में ही स्वीकार्य होना चाहिए। राजशेखर द्वारा इनके विवेचन न किए जाने का सम्भवतः यह कारण हो कि यह विषय वे ही रहे हों जिन्हें कवियों ने केवल प्रयोग देखकर रूढ़ कर दिया हो, किन्तु वे कुछ विशिष्ट निश्चित कविसमयों से भिन्न हों। अथवा सम्भव है राजशेखर ने केवल कुछ प्रमुख कविसमयों का विवेचन किया हो, अन्य बहुत से प्रचलित कविसमयों को उनके विवेचन में स्थान न मिला हो और उन्हीं के बीच यह वृक्ष दोहद रूप कविसमय भी रह गए हों, किन्तु राजशेखर के उल्लेखों से तो प्रतीत नहीं होता कि उनके विवेचन में कुछ प्रमुख ही कविसमय अन्तनिहित हैं। उनके विवेचन में सभी कविसमयों के (जो उनकी दृष्टि में वस्तुतः कविसमय थे) अन्तर्भाव की प्रतीति होती है। 1. दोहद [सुन्दरीचरणघातेनाशोकः पुष्यतीति प्रसिद्धि: ‘असूत सद्यः कुसुमान्यशोकः' 'पादेन नापैक्षत सुन्दरीणां सम्पर्कमाशिञ्जितनूपुरेण' (कुमारसंभवम् - 3/26) इति। अतः पादाघात एवाशोकस्य दोहद इति दिनकरः। तथा चोक्तम् ‘पदाघातादशोकस्तिलककुरबकौ वीक्षणालिङ्गनाभ्याम् स्त्रीणां स्पर्शात्प्रियङ्गविकसतिबकुल: सीधुगण्डूषसेकात्। मन्दारो नर्मवाक्यात् पटुमृदुहसनाच्चंपको वक्त्रवातात् चूतो गीतान्नमेरुर्विकसति च पुरो नर्तनात्कर्णिकारः॥ इति] रघुवंशम् (8-64 की टीका में)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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