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________________ [162] होगी, ऐसा माना जा सकता है। ज्योत्स्ना अपने श्वेत प्रकाशित रूप के कारण मानों अमृत रूप में घड़े में भर जाती है। ज्योत्स्ना के कुम्भापवाह्यत्व रूप की कल्पना में कवियों की ज्योत्स्ना के शुभ्र प्रकाशित स्वरूप को प्रकट करने की, उसकी अधिकाधिक शुभ्रता का वर्णन करने की भावना का समावेश है। चक्रवाक युगल का रात्रि में भिन्न-भिन्न तटों पर रहना : काव्य में कवि के प्रेम तथा विरह वर्णनों के आधार प्रायः चक्रवाक युगल बनते हैं। कवियों की कविसमय रूप कल्पना में रात्रि में चक्रवाकयुगल की भिन्न-भिन्न तटों पर स्थिति तथा प्रात: उनका मिलन स्वीकार किया गया है। किन्तु सभी काव्यशास्त्रियों के अनुसार यह केवल कल्पना ही है, सत्य नहीं। यदि चक्रवाकयुगल का रात्रिविरह सत्य नहीं है तो काव्यवर्णनों के प्रेम, विरह, संयोग, वियोग वर्णनों का माध्यम इन पक्षियों को ही बनाने का क्या कारण है? चक्रवाक युगल का ही रात्रि में वियोग तथा दिन में मिलन के पीछे क्या वैशिष्ट्य निहित है? सम्भवत: चक्रवाक पक्षियों का स्वर करुण क्रन्दन जैसा प्रतीत होता होगा। उस स्वर के विशेष रूप से रात्रि में ही मुखरित होने के कारण कवियों ने चक्रवाक पक्षियों के रात्रि में अपने प्रिय से अलग हो जाने की तथा इसी कारण अपने प्रिय के विरह में उनके करुण क्रन्दन करने की कल्पना की होगी। इस प्रकार यहाँ यह सम्भावना की जा सकती है कि चक्रवाक पक्षियों का रात्रि में ही विशिष्ट प्रकार का क्रन्दन जैसा स्वर कवियों की इस मान्यता का आधार बना होगा कि रात्रि में विरह के कारण ही चक्रवाक पक्षी दु:खी रहते हैं और करुण स्वर में अपने प्रिय को पुकारते हैं, किन्तु दिन में प्रिय से मिलन हो जाने से प्रसन्न पक्षी क्रन्दन नहीं करते। यह असत्य कल्पना कवियों के लिए अपने काव्यपात्रों के प्रेम, विरह, संयोग, वियोग को प्रकट करने का सुन्दर माध्यम बनी तथा प्रेम प्रस्तुतीकरण का यह सुन्दर माध्यम परम्परा रूप में सभी कवियों द्वारा अपनाया जाता रहा। चक्रवाक का विशिष्ट स्वर ही इस कल्पना का आधार है इसके उदाहरण स्वरूप 'किरातार्जुनीयम् का श्लोक। (9-14)1 1. 'यच्छति प्रतिमुखं दयितायै वाचमन्तिकगतेऽपि शकुन्तौ। नीयते स्म नतिमुज्झितहर्ष पङ्कजं मुखमिवाम्बुरुहिण्या।। (9-14) किरातार्जुनीयम् (भारवि)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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