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________________ [160] दिया। कवियों ने कमलों की केवल जल में उत्पत्ति रूप वैशिष्ट्य को अपना कर सभी जलों में उनकी स्थिति का वर्णन किया चाहे नदी का प्रवाहयुक्त जल हो अथवा सरोवर का बंधा जल, और नदी के वर्णन को अधिक सुन्दरतम बनाने के लिए नदी में कमल वर्णन की परम्परा बन गई। सभी जलाशयों में हंस : काव्य तथ्य निर्धारण कम करता है, वह सुन्दर कल्पनाओं का आश्रय अधिक है, कविगण सभी जलाशयों में हंसादि का वर्णन करते हैं, जबकि सभी जलाशयों में हंसादि की स्थिति सत्य नहीं है। हंसादि किसी किसी जलाशय में ही पाए जाते हैं, किन्तु इसमें सन्देह नहीं है कि हंसादि पक्षियों से युक्त होना जलाशय का सुन्दरतम रूप है। सभी जलाशयों में हंसों के न होने पर भी उनका वर्णन सुन्दर को प्रस्तुत करने की भावना पर ही आधारित माना जा सकता है। जलाशय वर्णन के समय कवि के सम्मुख जलाशय प्रस्तुत तथा प्रत्यक्ष ही रहता हो यह आवश्यक नहीं है, किन्तु उसकी कल्पना में वर्णनकाल में जलाशय अवश्य ही उपस्थित रहता है और कवि कल्पना सदा वस्तु के सुन्दरतम रूप का ही आश्रय बनती है। वस्तु के सुन्दरतम रूप का ही अपनी कल्पना की सूक्ष्म दृष्टि से देखकर वर्णन करने वाले कवि सभी जलाशयों का हंसादि सहित ही वर्णन करें तो आश्चर्य नहीं है। सभी पर्वतों में सवर्ण रत्नादि: सभी पर्वतों में सुवर्ण रत्नादि का वर्णन भी कवियों की वस्तु के सुन्दरतम स्वरूप को प्रस्तुत करने की भावना पर ही आधारित है। सुवर्ण रत्नादि की स्थिति पर्वतों में होती है, किन्तु सभी पर्वतों में सुवर्ण रत्नादि हों ही यह अनिवार्य नहीं है । सुवर्ण, रत्नादि के पर्वत में पाए जाने के साम्य पर काव्य के वर्ण्य विषय बनने वाले किसी भी पर्वत को सुन्दरतम तथा समृद्धतम बनाने के लिए कवियों ने उसे सुवर्ण रत्नादि से युक्त रूप में वर्णित करने की परम्परा बना ली। अन्धकार का मुष्टिग्राह्यत्व तथा सूचीभेद्यत्व : काव्यों में अन्धकार का मुष्टिग्राह्य तथा सूचीभेद्य स्वरूप वर्णित है, किन्तु यह कल्पना ही है सत्य नहीं, क्योंकि न तो अन्धकार की मुष्टिग्राह्यता सम्भव है और न सूचीभेद्यता। किन्तु अन्धकार के अत्यन्त प्रगाढ़ तथा घनीभूत रूप को प्रकट करने वाले कवियों के इस प्रकार के वर्णन काव्य जगत की
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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