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का ही उनमें उल्लेख है। विनयचन्द्र की काव्यशिक्षा में भी केवल कविसमय के भेदों का उल्लेख है। राजशेखर से पूर्व आचार्यों ने कविसमय का उल्लेख क्यों नहीं किया इस प्रश्न को उठाने का कोई कारण नहीं है। आचार्य भामह आदि न तो कविशिक्षक आचार्य थे और न तो उनके ग्रन्थों का कविशिक्षा से सम्बन्ध था। कविसमय का सम्बन्ध कविशिक्षा से ही है। अतः कविशिक्षा से सम्बद्ध ग्रन्थ के लेखक तथा कविशिक्षक आचार्य के रूप में प्रतिष्ठित आचार्य राजशेखर ने कविसमय को अपने विवेचन का विषय बनाया। कविसमय का उल्लेख न मिलने का यह तात्पर्य नहीं है कि यह विषय तब नहीं था। कविसमय से सम्बद्ध वर्णन तो बहुत पूर्व कालिदास आदि महाकवियों के ग्रन्थों में बहुतायत से मिलते हैं । आचार्य राजशेखर के पश्चात् इस विषय का नवीन मौलिक विवेचन न मिलने का यह कारण है कि जब किसी वस्तु अथवा विषय का परिपूर्ण विवेचन आचार्य राजशेखर द्वारा किया जा चुका है तब परवर्ती आचार्यों के लिए उस विषय का नवीन मौलिक रूप तो विवेचन के लिए शेष रह ही नहीं जाता।
___ आचार्य राजशेखर का विचार है कि किसी काव्यज्ञ के द्वारा ही कवि बनने की शिक्षा प्राप्त की जानी चाहिए। काव्यनिर्माण के इच्छुक कवि के लिए कविसमय का ज्ञान आवश्यक है और इनका ज्ञान देने वाला कोई काव्यज्ञ ही हो सकता है।
विभिन्न कविसमय :
नदी में कमल :
नदी में कमल की स्थिति सत्य नहीं है क्योंकि पङ्कजन्मा कमल प्रवाहयुक्त जल में नहीं खिलता। वे अपने सौन्दर्य से केवल सरोवरों के बंधे जल को ही अनुग्रहीत करते हैं। किन्तु प्रायः सभी महाकवियों ने नदी वर्णन के प्रसंग में नदियों में कमल का उल्लेख अवश्य किया है। कमलपुष्प की उसके सौन्दर्य के कारण सर्वत्र प्रसिद्धि है। नदियों में इन सुन्दर पुष्पों का वर्णन करके नदियों के सौन्दर्य का अभिवर्धन करने की तथा उसके अतिशय सुन्दर रूप को प्रस्तुत करने की कवि सौन्दर्य भावना ही इस
प्रकार के निबन्धन के सम्बन्ध में कार्य करती प्रतीत होती है। जल का अस्तित्व नदी और सरोवर दोनों
की समान विशेषता है। सरोवर के समान ही नदी में जल की ही स्थिति होने के साम्य पर कमल की अन्य विशेषताओं-बंधे जल में उत्पत्ति-को विस्मृत कर कवियों ने अपने काव्योपकार हेतु उस सुन्दर कमल को अपनी कल्पना के जगत् में नदी में भी स्थान दे दिया तथा नदी को अतिशय सौन्दर्य प्रदान कर