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अशास्त्रीय, अलौकिक न हो तो कविसमय नहीं है। इसीलिए राजशेखर ने कविसमय की परिभाषा में 'अशास्त्रीय'' अलौकिक' शब्द को परम्परायात से पूर्व रखा है तथा अशास्त्रीय, अलौकिक कहने के बाद ही 'परम्परायातं च' कहा है।
कविसमय में निहित सौन्दर्य भावना :
परम्परा से प्राप्त कविसमय रूप विरोधी अर्थों को अपनाने में परम्परा के अतिरिक्त कुछ कारण अवश्य निहित रहे होंगे। सम्भव है कविसमय के स्वरूप में कोई विशिष्ट गुण रहा हो जिससे उन्हें काव्योपकारक रूप में स्वीकार किया गया तथा उनके काव्योपकारकत्व के कारण उनका शास्त्र पृथक् तथा लोक पृथक् होना महत्वहीन हो गया।
वस्तु के स्वरूप को सुन्दर हृदयग्राही बनाकर प्रस्तुत करने की भावना कविसमयों में निहित दिखती है। इस विषय में कवियों की सुन्दर को ही प्रस्तुत करने की भावना को सार्वजनिक रूप प्राप्त हो गया है । सभी कवियों की कल्पनाएँ प्रायः परस्पर भिन्न होती हैं किन्तु कविसमयों में सभी कवियों की भावना और कल्पना को एकाकार कर दिया गया है और इस एकीकरण के मूल में कवियों में निहित वह भावना है जिसके वशीभूत होकर वे काव्य में वस्तु के सुन्दर, सरस रूप को ही प्रस्तुत करने के अभिलाषी होते हैं ।
इस विषय में आचार्य कुन्तक के विचारों को प्रस्तुत किया जा सकता है। आचार्य कुन्तक मानते हैं कि काव्य का अर्थ सहृदयों के हृदयों को आह्लादित करने वाले अपने स्वभाव के कारण मनोहारी तथा सुन्दर होता है ।1 यद्यपि किसी भी पद के अर्थ का उसके विभिन्न धर्मों से सम्बन्ध होता है, परन्तु केवल उसी धर्म से उसका सम्बन्ध काव्य में वर्णित होता है जो सहृदयों के हृदयों को आह्लादित करने में समर्थ है। किसी भी पदार्थ की वही स्वभावमहत्ता रस की पोषक अभिव्यक्ति बनती है जो सहृदयों के हृदयाह्लाद में समर्थ है।
1.
शब्दो विवक्षितार्थैकवाचकोऽन्येषु सत्स्वपि अर्थः सहृदयहृदयाह्लादकारिस्वस्पन्दसुन्दरः 191
प्रथम उन्मेष वक्रोक्तिजीवित (कुन्तक)