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________________ [133] झूले आदि की स्थिति विवेचित है। यह पूर्ण सुन्दर प्राकृतिक आवास तत्कालीन अधिकांश कवियों के समृद्ध राजसी जीवन का परिचायक है। सम्भवतः स्वयं आचार्य राजशेखर आदि विभिन्न राज्याश्रित कवियों को इस प्रकार के आवास उपलब्ध रहे हों, किन्तु सभी कवियों का आवास इसी प्रकार हो यह सम्भावना कम ही है। फिर भी आचार्य राजशेखर द्वारा विवेचित कवि के आवास का यह स्वरूप उनके इस सामान्य तात्पर्य को व्यक्त करता है कि प्रत्येक दृष्टि से कवि का आवास इस प्रकार का होना चाहिए जिसमें कवि के मानस के पूर्णत: शान्त रहने एवं काव्यनिर्माण की ओर प्रेरित होने की सम्भावना हो। कवि के आवास में वर्णित विभिन्न प्राकृतिक स्थितियाँ कवि की काव्य प्रेरणा एवं भावोदय हेतु प्रकृति की उपादेयता की सूचक हैं। किन्तु साथ ही यह भी कहा जा सकता है कि प्रकृति का सामीप्य कवि को काव्य निर्माण की प्रेरणा दे सकता है, अकवि को कवि नहीं बना सकता। निरन्तर प्रकृति के सामीप्य में निवास ही सभी को कवि नहीं बना देता । कवि बनने के लिए प्राथमिक आवश्यकता प्रतिभा की ही है। विभिन्न जन्मान्ध कवियों के प्रकृति का दर्शन किए बिना ही श्रेष्ठ कवि बनने के दृष्टान्त काव्य जगत् में मिलते हैं। कवि के आवास में शान्त तथा विजन स्थान की स्थिति2 उसके काव्य रचना से श्रान्त होने पर पूर्ण विश्राम एवं एकान्त मिलने की आवश्यकता से सम्बद्ध विवेचन है। विभिन्न प्रकीर्ण कवि शिक्षाएँ : काव्यनिर्माण से पूर्व काव्य की विद्याओं, उपविद्याओं के अनुशीलन के अतिरिक्त कवि के लिए भाषा एवं विषय की दृष्टि से अपनी ज्ञान सीमा भी विवेच्य है। आचार्य राजशेखर कवि की ज्ञान सीमा के ही आधार पर ही की गई काव्य रचना की उपादेयता स्वीकार करते हैं। अपने काव्य के लिए स्वीकृत विषय के सम्बन्ध में कवि का अपूर्ण ज्ञान उसके काव्य को सहृदयों की दृष्टि में उपहासास्पद बना सकता 1. तस्य भवनं सुसंमृष्टं, ऋतुषट्कोचित्विविधस्थानम्, अनेकतरूमूलकल्पितापाश्रयवृक्षवाटिकाम् सक्रीडापर्वतकं, सदीर्घिकापुष्करिणीकं, ससरित्समुद्रावर्तकम् सकुल्याप्रवाहम्, सबर्हिणहरिणहारीतं, ससारसचक्रवाकहंसम्, सचकोरक्रौञ्चकुररशुकसारिकम्, धर्मक्लान्तिचौरम्, सभूमिधारागृहयन्त्रलतामण्डपकम् सदोलाप्रे च स्यात्। काव्यमीमांसा - (दशम अध्याय) 2 काव्याभिनिवेशखिन्नस्य मनसस्तद्विनिर्वेदच्छेदायाज्ञामूकपरिजनं विजनं वा तस्य स्थानम् काव्यमीमांसा - (दशम अध्याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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