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ताड़पत्र, भूर्जपत्र, कीलों से गुंथे तालपत्र एवं साफ चिकनी दीवारें सम्मिलित हैं।1 यद्यपि इन लेखन सामग्रियों का रूप प्रत्येक युग में प्रचलित भिन्न सामग्रियों के आधार पर पृथक् हो सकता है किन्तु काव्यलेखन हेतु लेखन सामग्री प्रत्येक युग के कवि के लिए आवश्यक है। कुछ आचार्यों ने इन लेखन सामग्रियों को काव्याविद्या की सामग्री के रूप में स्वीकार किया है किन्तु आचार्य राजशेखर काव्यनिर्माण के आवश्यक उपकरण के रूप में केवल प्रतिभा की ही अनिवार्यता स्वीकार करते हैं 2 लेखन सामग्री के समीप उपस्थित रहने पर भी मन में काव्य के शब्द अर्थ की उद्भाविका प्रतिभा के अभाव में काव्यनिर्माण असम्भव होने के कारण लेखन सामग्री व्यर्थ हो जाती है। अतः काव्य के भावादि का उदय एवं काव्यनिर्माण केवल प्रतिभा द्वारा ही हो सकता है, लेखन सामग्री के समीप उपस्थित रहने से ही नहीं, किन्तु फिर भी प्रतिभाशील एवं काव्यनिर्माण में पूर्ण सक्षम कवि के लिए काव्य की लेखन सामग्री की आवश्यकता का भी निराकरण नहीं किया जा सकता। प्रतिभा को काव्यनिर्माण की प्रमुख सामग्री के रूप में स्वीकार करके भी काव्य की लेखन सामग्री को काव्यनिर्माण की गौण सहायक सामग्री कहा जा सकता है, क्योंकि काव्य को सुरक्षित रखने के लिए काव्यलेखन की एवं काव्यलेखन हेतु लेखन सामग्री की भी आवश्यकता है। केवल प्रतिभा द्वारा मन में काव्यनिर्माण एवं काव्यपाठ उसे स्थायी नहीं बनाता, बल्कि काव्य का लेखन ही उसे सुरक्षा एवं स्थायित्व प्रदान करता है ।
कवि का आवास :
आचार्य राजशेखर की 'काव्यमीमांसा' में कवि के आवास का विशिष्ट रूप उपस्थित है जिसमें छहों ऋतुओं के अनुकूल स्थान, सुन्दर वृक्षवाटिकाओं, क्रीडापर्वतों, पुष्करिणी, समुद्र तथा नदियों के कृत्रिम आवर्त, नहरों के प्रवाह, मयूर, हरिण, हारिल, सारस, चक्रवाक, हंस, चकोर, क्रौञ्च कुरर आदि पक्षी एवं धूप, वर्षा से रक्षा करने वाले छाया स्थान, गुफाओं, धारायन्त्र, लतामण्डप, हिंडोले तथा
1. तस्य सम्पुटिका सफलकखटिका, समुद्गकः, सलेखनीकमषी भाजनानि, ताडिपत्राणि भूर्जत्वचो वा, सलोहकण्टकानि तालदलानि सुसम्मृष्टा भित्तयः सततसन्निहिता स्युः ।
काव्यमीमांसा - ( दशम अध्याय)
2. 'तद्धि काव्यविद्यायाः परिकरः' इति आचार्या: 'प्रतिभैव परिकरः' इति यायावरीयः ।
(काव्यमीमांसा दशम अध्याय )