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________________ [7] श्री मैक्समूलर का चौदहवीं शताब्दी का मत : श्री मैक्समूलर आचार्य राजशेखर को 'प्रबन्धकोष' का रचयिता मानकर उन्हें चौदहवीं शताब्दी का सिद्ध करते हैं। 1 किन्तु 'काव्यमीमांसा' के रचयिता आचार्य राजशेखर ने 'प्रबन्धकोष' नामक ग्रन्थ की रचना नहीं की थी। 'प्रबन्धकोष' के रचयिता चौदहवीं शताब्दी के राजशेखर सूरि नामक जैन आचार्य थे। आचार्य राजशेखर का प्रामाणिक काल नवीं शताब्दी : आचार्य राजशेखर के ग्रन्थों में उनका पर्याप्त परिचय उपलब्ध है । उन्होंने अपने कुल तथा आश्रयदाताओं के सम्बन्ध में भी बहुत अधिक विवरण प्रस्तुत किए हैं। अतः उनके काल निर्णय में सन्देह का लेश भी नहीं रह जाता। आचार्य राजशेखर गुर्जर प्रतिहारवंशी नरेश महेन्द्रपाल के गुरू थे। उसके पुत्र महीपाल तथा कलचुरी नरेश युवराजदेव प्रथम का भी उन्होंने आश्रय ग्रहण किया था। उनके इन आश्रयदाताओं का समय प्रामाणिक रूप से विभिन्न शिलालेखों द्वारा ज्ञात किया जा चुका है। महेन्द्रपाल प्रथम के गुरू राजशेखर : गुर्जर प्रतिहार वंशी नरेश भोजदेव अथवा मिहिरभोज की मृत्यु 885 ई० में हो चुकी थी। उसके पुत्र महेन्द्रपाल ने जब शासन संभाला, तभी संभवतः उनके गुरू राजशेखर ने भी साहित्यरचनाओं का आरम्भ किया था । हर्ष संवत् 276882 ई० का पेहवा अभिलेख भोजदेव के समय का है। अतः भोजदेव की अन्तिम ज्ञात तिथि 882 ई० है 12 1. "Rajshekhar lived in the fourteenth century. He wrote the Prabandhakosh in about 1347 A.D." 'India— What can it teach us?' Maxmuller (Page - 328) 2. उत्तर भारत का राजनीतिक इतिहास' Dr. V.N. Pathak, (Page - 150)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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