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________________ [124] होने के लिए काव्य सम्बन्धी कार्यों की नियमितता अधिक आवश्यक है किन्तु काव्य सम्बन्धी कार्यों के नियमन की आवश्यकता श्रेष्ठ काव्यनिर्माण हेतु सभी कवियों के लिए समान रूप से स्वीकार की जा सकती है। आचार्य राजशेखर ने दिन, रात्रि का प्रहरों के आधार पर चार चार विभाग करके कवि के विभिन्न कार्य निर्धारित किए हैं । उनके द्वारा निर्धारित काव्य सम्बन्धी कार्यों के पांच विभाग हैं। क. एकान्त विद्यागृह आदि में काव्य की विद्याओं उपविद्याओं का अनुशीलन, ख. काव्यगोष्ठी में काव्यज्ञाताओं के सम्पर्क में काव्यसम्बन्धी समस्याओं का विवेचन, ग. काव्यनिर्माण का अभ्यास जिसमें सुन्दर अक्षरों का अभ्यास तथा चित्र काव्य का निर्माण भी सम्मिलित है। घ. निर्मित काव्य की पुनः परीक्षा तथा त्रुटियों को दूर करते हुए काव्य का संशोधन जैसे अधिक पदों का त्याग, न्यून पदों का पूरण, अन्यथा स्थित पद का परिवर्तन तथा विस्मृत पद का अनुसन्धान। दूसरे शब्दों में काव्य में पद संघटना सम्बन्धी दोषों का सुधार ऊ काव्य का लेखन कार्य । कवि के कार्य रात्रि के चुतुर्थ प्रहर अर्थात ब्राह्म मुहूर्त में जागरण से प्रारम्भ होते हैं ।1 ब्राह्मी अर्थात् सरस्वती का प्रतिबोधक होने के कारण रात्रि का चतुर्थ प्रहर ब्राह्ममुहूर्त कहलाता है। मन की निर्मलता, एकाग्रता तथा बुद्धि का प्रसाद इस मुहूर्त में जागरण के ही परिणाम हैं। ब्राह्म मुहूर्त में जागरण से ही कवि के मानस में विभिन्न अर्थों का प्रत्यक्षीकरण तथा नवीन अर्थों का उद्भव होता है। रात्रि के इस चतुर्थ प्रहर में यद्यपि मन की निर्मलता स्वाभाविक है फिर भी मन की पूर्ण सात्विकता के लिए सन्ध्यावन्दन तथा सरस्वती स्त्रोत के पाठ को आचार्य राजशेखर ने कवि के इस प्रहर के कार्य रूप में प्रदर्शित किया है। काव्य की देवी सरस्वती के मानस में उद्बोध हेतु काव्य- निर्माण से सम्बद्ध कार्यो को आरम्भ करने से पूर्व उसकी आराधना को आवश्यक माना गया है। कवि के दिन के प्रथम प्रहर का कार्य है काव्य सम्बन्धी विभिन्न विषयों व्याकरण, नामकोश, छन्दः शास्त्र, अलंकार शास्त्र आदि के ज्ञान के लिए काव्य की विभिन्न विद्याओं, उपविद्याओं का एकान्त 1. म प्रातरुत्थाय कृतसन्ध्यावरिवस्यः सारस्वतम् सूक्तमधीयीत । (काव्यमीमांसा दशम अध्याय)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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