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भेद हैं।। इस ग्रन्थ में काव्य की सर्वश्रेष्ठता की स्थिति मृद्वीका पाक को माना गया है। आदि तथा अन्त दोनों में सरसता इस पाक का वैशिष्ट्य है। अभ्यासी कवि का नालिकेर, मृद्वीका, सहकार आदि वाक्यपाक भोजराज का प्रौढ़ि गुण है । इन पाकों को उन्होंने पाकभक्ति नाम से भी अभिहित किया है। इनमें आदि में अस्वादु तथा अन्त में स्वादु मृवीका पाक है-आदि तथा अन्त दोनों में स्वादु नालिकेर पाक है तथा आदि में स्वादु, मध्य में स्वादुतर तथा अन्त में स्वादुतम आम्रपाक है 3
आचार्य राजशेखर की दृष्टि में नालिकेर पाक श्रेष्ठ है क्योंकि वह आदि से अन्त तक स्वादु है ।।
भोजराज की दृष्टि में आदि, मध्य, अन्त में क्रमश: स्वादु, स्वादुतर तथा स्वादुतम सहकार पाक श्रेष्ठ है।
1 शब्दार्थावुपकुर्वाणो नाम्नोभयगुणः स्मृतः। तस्यः प्रसादः सौभाग्यं यथासंख्यं प्रशस्यता । 18।
पाको राग इति प्राज्ञै षट प्रपञ्चविपञ्चिताः। उच्चैः परिणतिः काऽपि पाक इत्यभिधीयते । 22 । मृद्वीकानारिकेलाम्बुपाकभेदा चतुर्विधः आदावन्ते च सौरस्यं मृद्वीकापाक एव सः । 24 ।
(दशम अध्याय)
(अग्निपुराण का काव्यशास्त्रीय भाग) 2 प्रौढ़ि शब्दगुण
उक्तेः प्रौढः परीपाकः प्रोच्यते प्रौढिसंज्ञया अत्र प्रकृतिस्थकोमलकठोरेभ्यो नागरोपनागरग्राम्येभ्यो वा पदेभ्योऽभ्युद्धतादीनां ग्राम्यादीनामुभयेषां वा पदानामावापोद्वापाभ्यां सन्निवेशचारूत्वेन योऽयमाभ्यासिको नालिकेरीपाको मृद्वीकापाक इत्यादिर्वाक्यपरीपाक: मा प्रौढिरित्युच्यते। सरस्वतीकण्ठाभरण (भोजराज)
(प्रथम परिच्छेद) 3 मृद्वीकानारिकेराम्रपाकाद्याः पाकभक्यः । 125।
(पेज - 273) पाकक्तिषु आदावस्वादु अन्ते स्वादु मृहीकापाकम् आद्यन्तयो स्वादु नारिकलीपाकम् आदिमध्यान्तेषु स्वादु स्वादतर
ग्वादतममित्याम्रपाकम् (सरस्वतीकण्ठाभरण (भोजराज) (पञ्चम परिच्छेद) पेज - 3531) 4. आद्यन्तयोः स्वादु नालिकेरपामिति।
(काव्यमीमांसा - पञ्चम अध्याय)