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________________ [96] काव्यनिर्माण सम्बन्धी क्रमिक शिक्षा से सम्बद्ध हैं। आचार्य राजशेखर के समान आचार्य क्षेमेन्द्र ने भी तीन प्रकार के शिष्य भेद स्वीकार किए हैं- केवल उनके नामों में भिन्नता है। आचार्य क्षेमेन्द्र ने कवित्वप्राप्ति के दिव्य तथा मानुष दो प्रकार के उपाय बतलाए हैं।1 मानुष प्रयत्न शिक्षार्थी की योग्यता के अनुसार भिन्न होते हैं- आचार्य राजशेखर ने कवित्वप्राप्ति के प्रयत्नों का प्रतिभा की भिन्नता से भिन्न-भिन्न रुप स्वीकार किया है। अपनी योग्यता के आधार पर कवित्वप्राति के भिन्न प्रयत्नों से सम्बद्ध शिक्षार्थी क्षेमेन्द्र के अनुसार तीन हैं: क. अल्पप्रयत्नसाध्य, ख. कष्टसाध्य तथा ग. दुःसाध्य ? इन्हें ही क्रमशः सुशिष्य, दुःशिष्य तथा अशिष्य भी कहा जा सकता है। आचार्य क्षेमेन्द्र द्वारा विवेचित इन शिष्यों का आचार्य राजशेखर के क्रमशः बुद्धिमान्, आहार्यबुद्धि एवं दुर्बुद्धि शिष्यों से साम्य दृष्टिगत होता है- क्योंकि क्षेमेन्द्र के अल्पप्रयत्न साध्य सुशिष्य के लिए भी राजशेखर के बुद्धिमान् शिष्य के समान साहित्य के ज्ञाताओं की सत्संगति में अल्प अभ्यास ही सुकवि बनने के लिए पर्याप्त है। दुःशिष्य को आहार्यबुद्धि शिष्य के समान काव्यसम्बन्धी विविध ज्ञान तथा काव्यनिर्माण की प्रेरणा के लिए महाकवि के साहाय्य की तथा उसके सामीप्य में अधिक अभ्यास की आवश्यकता है। काव्यनिर्माण सम्बन्धी शिक्षाएँ केवल इन सुशिष्यों तथा दुःशिष्यों के लिए ही लाभकर हैं । क्षेमेन्द्र द्वारा विवेचित तृतीय प्रकार का 'अशिष्य' राजशेखर के दुर्बुद्धि शिष्य के समान पूर्णतः मूढ़ है-शिक्षा एवम् अभ्यास उसके लिए व्यर्थ हैं। क्षेमेन्द्र का कवित्वप्राप्ति का दिव्य उपाय ऐसे ही शिष्यों के लिए सार्थक माना जा सकता है। आचार्य क्षेमेन्द्र की धारणा है कि शिक्षा एवं अभ्यास शिष्य में कवित्ववृत्ति का उदय भी करा सकते हैं किन्तु जिनमें स्वयं ही कवित्ववृत्ति विद्यमान हो (जैसे दुःशिष्य में), शिक्षा एवं अभ्यास द्वारा उनके काव्यनिर्माण से सम्बद्ध विभिन्न दोषों का समाप्त होना सम्भव है। 1. अथेदानीमकवेः कवित्वशक्तिरुपदिश्यते प्रथमं तावद् दिव्यः प्रयत्नः ततः पौरूष : (प्रथम संधि) कविकण्ठाभरण (क्षेमेन्द्र) 2 तत्र त्रयः शिष्याः काव्यक्रियायामुपदेश्याः अल्पप्रयत्नसाध्यः, कृच्छ्रसाध्यः असाध्यश्चेति। (प्रथम सन्धि) कविकण्ठाभरण (क्षेमेन्द्र)
SR No.010645
Book TitleAcharya Rajshekhar krut Kavyamimansa ka Aalochanatmaka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKiran Srivastav
PublisherIlahabad University
Publication Year1998
Total Pages339
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size28 MB
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