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[ कवि जान कृत . उतते आयो फतिहपुर, ताक्यो खांनु जलाल । बहुत प्यारसेती मिल्यौ, भर लीनो अंकमाल ।।४६९।। कहयो मुबारक साहनै, हौं आयो तुम ताक । जोधै बीकै हौ फिर्यो, गनै न कोऊ साक ॥४७०॥ सबै डरै बहलोलते, ऊपर करै न कोइ। काम हमारो जल्लोजू, तुमते है तो होइ ।।४७१।। जलो कह्यौ बहलोलते, डर्यो न मेरो बाप । अब जो हौ वाते डरौ, खोर लगाऊं आप ॥४७२॥ खां जलाल तब कटक करि, गये जूझनू मांहि। फतिहखांनुके दल भगे, जूझ सक्यो को नाहि ॥४७३॥ तबहि मुबारकसाहको, दयो जूझनू राज । फतिहखानु उत मरि गयो, पूजे सब मन काज ॥४७४।। फतिहखानु जब मरि गयो, सुत समस सिरमौर । महमदखां टीकौ कर्यो, गई मुबारक ठौर ।।४७५।। रह्यो लुहागर जाइक, खांनु जलाल जुधार। नागौरीकी देत दुख, पकरें वोट पहार ॥४७६।। सूनो फतिहपुर सुन्यो, चित बीदा ललचाइ । जानत काहू भांतिकै, गढ़मै पैठौ जाइ ॥४७७॥ बीदा दल बल जोरिक, नरहर उतर्यो जाइ । खानुं दिलावरसौं मिल्यो, बात कही समझाइ ।।४७८॥ नांहि फतिहपुरमैं कोउ, तुम चलि मोकी देहु । देउं रुपया दस सहस, अरु इक तनया लेहु ॥४७६॥ सुनियह बात पठांन कै, भाई है मन मांहि । देइ दमामो उठि चल्यो, गहर लगाई नांहि ॥४८०।। आवत आवत गोवरै, उतरे दोउ आइ । भलो महूरत ना लहै, पैठे गढ़मै जाइ ॥४८१॥ .