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क्यामखां रासा]
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बादा पहुंच्यौ चिमनको, दुंदुभ लयो छिड़ाइ । जैत भई सब जग सुनी, .अंखन न अंग समाइ ॥४११ फतिहखानुं दल फतिह कर, आये लै नीसांन । सदा फतिहपुरमे बजै, रससौं सुजस जहांन ।।४१२।। फतिहखानुंके दल प्रवल, भये येकते येक । कौन कौनकौ जांवल्यौ, सौहे सुभट अनेक ॥४१३।। कांधिल रिनमलराइको, दयो खेत विचराइ । सीस कटे वहु गुन लर्यो, बहु गुन दये दिखाइ ॥४१४।। सारौ सांगै रानकौ, अजा सांखलौ नांव । फतिहखांनकै कटकनै, मारि गिरायो ठांव ॥४१५।। तिहं समये चीतौरहौ, आपुन फतंन मुछार । स्वामि बिना सेवक लरे, सुजस भयो सँसार ॥४१६।। जेते हैं दल फतनके, राठोरनसौं रार। जो आपन है सापुरस, तिहं सेवक जूझार ॥४१७।। तैसी ही बुधि उपजत, बैठत तैसे पास । जांन कहै यामै नहीं, अंत आदिकी रास ॥४१८॥
फतननै मुसकीखां किररांनी मारयो किररांनी हो जातको, मुसकीखां तिहिं नाम । आयो फत्तनसों लरन, खोवन अपनी मांम ।।४१९।। इतने फतिहखां चढ्यो, दलबल साजि अपार ।
सरसमै मिलि दुहुनन, सरस मचाई रार ।।४२०॥ त्रिभंगीछंद। उतहि पठान, इत चहुवानं, गज केकानंजोधजुरे ।
गोली बहु छुटै, करपग टुट्टै, मस्तक फुटै नांहि मुरे ।।४२१।। लगे तन बानं, निकसै प्रानं, जूझै ज्वानं थकि न रहै । बरछी अनियारी, तेग दुधारी, काट भारी सूर सह ॥४२२॥