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क्यामखां रासा]
ढल वल सजि लोदी चल्यो, रिनथंभौरको लैंन । धूर बिनां डिठ नां परै, येक भये दिन रैन ॥३८६।। सुनी फतिहखां बात यहु, दल बल साजि अपार । मारगमै वहलोलको, कीनो जाइ जुहार ॥३८७।। लोदी देखत फतनको, बहुत बड़ाई दीन । क्यांमखांनकै नांवते, अंक वारनि भर लीन ॥३८॥ नाव सुनत ही यों कह्यो, तब लोदी पतिसाह । फतिहखानकै मिलत ही, दीनी फतह अलाह ।।३८६।। परधाननिसौ यों कह्यो, बार बार सुलतांन । कंचनको मानस तक्यौ, फतिहखानु चहुवांन ॥३०॥ रिनथंभोरहू मैं सुन्यों, आवत है बहलोल । तब मांडौको छत्रपति, उनहू लीनौ बोल ॥३९१।। ताको नांव हिसामदी, मांडौको. सुलतांन । रिनथंभोरकी भीरको, आयौ दै नीसांन ॥३६२।। जव इतते लोदी गयौ, दल बल लये अपार । गढई भयौ हिसामदी, नाहि सक्यौ करि रार ॥३६३।। फतननै हिसामदी मांडौको पातलाह मारयो येक द्यौस बहलोलन, फत्तन लयौ बुलाइ । प्यार कियौ आदर दियौ, बात कही बिरदाइ ।।३६४॥ दादै तेरै क्यामखां, कैसे कीने काम । फतिह करौ रिनथंभको, फतिह तिहारै नाम ॥३६५।। फतिहखानुं ह्रकै बिदा, चले लगे गढ़ जाइ । आगै साह हिसामदी, लर्यो सनमुख आइ ॥३९६॥ खोलि पौरि हिसामदी, देख्यौ थोरी संग । आपुन बहु दलवल लह्ये, आये लरन उमंग ॥३६७।।